1.2.252

चौपाई
पुर जन नारि मगन अति प्रीती। बासर जाहिं पलक सम बीती।।
सीय सासु प्रति बेष बनाई। सादर करइ सरिस सेवकाई।।
लखा न मरमु राम बिनु काहूँ। माया सब सिय माया माहूँ।।
सीयँ सासु सेवा बस कीन्हीं। तिन्ह लहि सुख सिख आसिष दीन्हीं।।
लखि सिय सहित सरल दोउ भाई। कुटिल रानि पछितानि अघाई।।
अवनि जमहि जाचति कैकेई। महि न बीचु बिधि मीचु न देई।।
लोकहुँ बेद बिदित कबि कहहीं। राम बिमुख थलु नरक न लहहीं।।
यहु संसउ सब के मन माहीं। राम गवनु बिधि अवध कि नाहीं।।

दोहा/सोरठा
निसि न नीद नहिं भूख दिन भरतु बिकल सुचि सोच।
नीच कीच बिच मगन जस मीनहि सलिल सँकोच।।252।।

Kaanda: 

Type: 

Language: 

Verse Number: