105

3.2.105

चौपाई
તેહિ દિન ભયઉ બિટપ તર બાસૂ। લખન સખાસબ કીન્હ સુપાસૂ।।
પ્રાત પ્રાતકૃત કરિ રધુસાઈ। તીરથરાજુ દીખ પ્રભુ જાઈ।।
સચિવ સત્ય શ્રધ્દા પ્રિય નારી। માધવ સરિસ મીતુ હિતકારી।।
ચારિ પદારથ ભરા ભારુ। પુન્ય પ્રદેસ દેસ અતિ ચારુ।।
છેત્ર અગમ ગઢ઼ુ ગાઢ઼ સુહાવા। સપનેહુનહિં પ્રતિપચ્છિન્હ પાવા।।
સેન સકલ તીરથ બર બીરા। કલુષ અનીક દલન રનધીરા।।
સંગમુ સિંહાસનુ સુઠિ સોહા। છત્રુ અખયબટુ મુનિ મનુ મોહા।।
ચવ જમુન અરુ ગંગ તરંગા। દેખિ હોહિં દુખ દારિદ ભંગા।।

3.1.105

चौपाई
મૈં જાના તુમ્હાર ગુન સીલા। કહઉસુનહુ અબ રઘુપતિ લીલા।।
સુનુ મુનિ આજુ સમાગમ તોરેં। કહિ ન જાઇ જસ સુખુ મન મોરેં।।
રામ ચરિત અતિ અમિત મુનિસા। કહિ ન સકહિં સત કોટિ અહીસા।।
તદપિ જથાશ્રુત કહઉબખાની। સુમિરિ ગિરાપતિ પ્રભુ ધનુપાની।।
સારદ દારુનારિ સમ સ્વામી। રામુ સૂત્રધર અંતરજામી।।
જેહિ પર કૃપા કરહિં જનુ જાની। કબિ ઉર અજિર નચાવહિં બાની।।
પ્રનવઉસોઇ કૃપાલ રઘુનાથા। બરનઉબિસદ તાસુ ગુન ગાથા।।
પરમ રમ્ય ગિરિબરુ કૈલાસૂ। સદા જહાસિવ ઉમા નિવાસૂ।।

2.7.105

चौपाई
গযউউজেনী সুনু উরগারী৷ দীন মলীন দরিদ্র দুখারী৷৷
গএকাল কছু সংপতি পাঈ৷ তহপুনি করউসংভু সেবকাঈ৷৷
বিপ্র এক বৈদিক সিব পূজা৷ করই সদা তেহি কাজু ন দূজা৷৷
পরম সাধু পরমারথ বিংদক৷ সংভু উপাসক নহিং হরি নিংদক৷৷
তেহি সেবউমৈং কপট সমেতা৷ দ্বিজ দযাল অতি নীতি নিকেতা৷৷
বাহিজ নম্র দেখি মোহি সাঈং৷ বিপ্র পঢ়াব পুত্র কী নাঈং৷৷
সংভু মংত্র মোহি দ্বিজবর দীন্হা৷ সুভ উপদেস বিবিধ বিধি কীন্হা৷৷
জপউমংত্র সিব মংদির জাঈ৷ হৃদযদংভ অহমিতি অধিকাঈ৷৷

2.6.105

चौपाई
মংদোদরী বচন সুনি কানা৷ সুর মুনি সিদ্ধ সবন্হি সুখ মানা৷৷
অজ মহেস নারদ সনকাদী৷ জে মুনিবর পরমারথবাদী৷৷
ভরি লোচন রঘুপতিহি নিহারী৷ প্রেম মগন সব ভএ সুখারী৷৷
রুদন করত দেখীং সব নারী৷ গযউ বিভীষনু মন দুখ ভারী৷৷
বংধু দসা বিলোকি দুখ কীন্হা৷ তব প্রভু অনুজহি আযসু দীন্হা৷৷
লছিমন তেহি বহু বিধি সমুঝাযো৷ বহুরি বিভীষন প্রভু পহিং আযো৷৷
কৃপাদৃষ্টি প্রভু তাহি বিলোকা৷ করহু ক্রিযা পরিহরি সব সোকা৷৷
কীন্হি ক্রিযা প্রভু আযসু মানী৷ বিধিবত দেস কাল জিযজানী৷৷

2.2.105

चौपाई
তেহি দিন ভযউ বিটপ তর বাসূ৷ লখন সখাসব কীন্হ সুপাসূ৷৷
প্রাত প্রাতকৃত করি রধুসাঈ৷ তীরথরাজু দীখ প্রভু জাঈ৷৷
সচিব সত্য শ্রধ্দা প্রিয নারী৷ মাধব সরিস মীতু হিতকারী৷৷
চারি পদারথ ভরা ভারু৷ পুন্য প্রদেস দেস অতি চারু৷৷
ছেত্র অগম গঢ়ু গাঢ় সুহাবা৷ সপনেহুনহিং প্রতিপচ্ছিন্হ পাবা৷৷
সেন সকল তীরথ বর বীরা৷ কলুষ অনীক দলন রনধীরা৷৷
সংগমু সিংহাসনু সুঠি সোহা৷ ছত্রু অখযবটু মুনি মনু মোহা৷৷
চব জমুন অরু গংগ তরংগা৷ দেখি হোহিং দুখ দারিদ ভংগা৷৷

2.1.105

चौपाई
মৈং জানা তুম্হার গুন সীলা৷ কহউসুনহু অব রঘুপতি লীলা৷৷
সুনু মুনি আজু সমাগম তোরেং৷ কহি ন জাই জস সুখু মন মোরেং৷৷
রাম চরিত অতি অমিত মুনিসা৷ কহি ন সকহিং সত কোটি অহীসা৷৷
তদপি জথাশ্রুত কহউবখানী৷ সুমিরি গিরাপতি প্রভু ধনুপানী৷৷
সারদ দারুনারি সম স্বামী৷ রামু সূত্রধর অংতরজামী৷৷
জেহি পর কৃপা করহিং জনু জানী৷ কবি উর অজির নচাবহিং বানী৷৷
প্রনবউসোই কৃপাল রঘুনাথা৷ বরনউবিসদ তাসু গুন গাথা৷৷
পরম রম্য গিরিবরু কৈলাসূ৷ সদা জহাসিব উমা নিবাসূ৷৷

1.7.105

चौपाई
गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी।।
गएँ काल कछु संपति पाई। तहँ पुनि करउँ संभु सेवकाई।।
बिप्र एक बैदिक सिव पूजा। करइ सदा तेहि काजु न दूजा।।
परम साधु परमारथ बिंदक। संभु उपासक नहिं हरि निंदक।।
तेहि सेवउँ मैं कपट समेता। द्विज दयाल अति नीति निकेता।।
बाहिज नम्र देखि मोहि साईं। बिप्र पढ़ाव पुत्र की नाईं।।
संभु मंत्र मोहि द्विजबर दीन्हा। सुभ उपदेस बिबिध बिधि कीन्हा।।
जपउँ मंत्र सिव मंदिर जाई। हृदयँ दंभ अहमिति अधिकाई।।

1.6.105

चौपाई
मंदोदरी बचन सुनि काना। सुर मुनि सिद्ध सबन्हि सुख माना।।
अज महेस नारद सनकादी। जे मुनिबर परमारथबादी।।
भरि लोचन रघुपतिहि निहारी। प्रेम मगन सब भए सुखारी।।
रुदन करत देखीं सब नारी। गयउ बिभीषनु मन दुख भारी।।
बंधु दसा बिलोकि दुख कीन्हा। तब प्रभु अनुजहि आयसु दीन्हा।।
लछिमन तेहि बहु बिधि समुझायो। बहुरि बिभीषन प्रभु पहिं आयो।।
कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका। करहु क्रिया परिहरि सब सोका।।
कीन्हि क्रिया प्रभु आयसु मानी। बिधिवत देस काल जियँ जानी।।

1.2.105

चौपाई
तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू।।
प्रात प्रातकृत करि रधुसाई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई।।
सचिव सत्य श्रध्दा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी।।
चारि पदारथ भरा भँडारु। पुन्य प्रदेस देस अति चारु।।
छेत्र अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा।।
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा।।
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा।।
चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा।।

दोहा/सोरठा

1.1.105

चौपाई
मैं जाना तुम्हार गुन सीला। कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला।।
सुनु मुनि आजु समागम तोरें। कहि न जाइ जस सुखु मन मोरें।।
राम चरित अति अमित मुनिसा। कहि न सकहिं सत कोटि अहीसा।।
तदपि जथाश्रुत कहउँ बखानी। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी।।
सारद दारुनारि सम स्वामी। रामु सूत्रधर अंतरजामी।।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी।।
प्रनवउँ सोइ कृपाल रघुनाथा। बरनउँ बिसद तासु गुन गाथा।।
परम रम्य गिरिबरु कैलासू। सदा जहाँ सिव उमा निवासू।।

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