106

3.2.106

चौपाई
કો કહિ સકઇ પ્રયાગ પ્રભાઊ। કલુષ પુંજ કુંજર મૃગરાઊ।।
અસ તીરથપતિ દેખિ સુહાવા। સુખ સાગર રઘુબર સુખુ પાવા।।
કહિ સિય લખનહિ સખહિ સુનાઈ। શ્રીમુખ તીરથરાજ બડ઼ાઈ।।
કરિ પ્રનામુ દેખત બન બાગા। કહત મહાતમ અતિ અનુરાગા।।
એહિ બિધિ આઇ બિલોકી બેની। સુમિરત સકલ સુમંગલ દેની।।
મુદિત નહાઇ કીન્હિ સિવ સેવા। પુજિ જથાબિધિ તીરથ દેવા।।
તબ પ્રભુ ભરદ્વાજ પહિં આએ। કરત દંડવત મુનિ ઉર લાએ।।
મુનિ મન મોદ ન કછુ કહિ જાઇ। બ્રહ્માનંદ રાસિ જનુ પાઈ।।

3.1.106

चौपाई
હરિ હર બિમુખ ધર્મ રતિ નાહીં। તે નર તહસપનેહુનહિં જાહીં।।
તેહિ ગિરિ પર બટ બિટપ બિસાલા। નિત નૂતન સુંદર સબ કાલા।।
ત્રિબિધ સમીર સુસીતલિ છાયા। સિવ બિશ્રામ બિટપ શ્રુતિ ગાયા।।
એક બાર તેહિ તર પ્રભુ ગયઊ। તરુ બિલોકિ ઉર અતિ સુખુ ભયઊ।।
નિજ કર ડાસિ નાગરિપુ છાલા। બૈઠૈ સહજહિં સંભુ કૃપાલા।।
કુંદ ઇંદુ દર ગૌર સરીરા। ભુજ પ્રલંબ પરિધન મુનિચીરા।।
તરુન અરુન અંબુજ સમ ચરના। નખ દુતિ ભગત હૃદય તમ હરના।।
ભુજગ ભૂતિ ભૂષન ત્રિપુરારી। આનનુ સરદ ચંદ છબિ હારી।।

2.7.106

चौपाई
এক বার গুর লীন্হ বোলাঈ৷ মোহি নীতি বহু ভাি সিখাঈ৷৷
সিব সেবা কর ফল সুত সোঈ৷ অবিরল ভগতি রাম পদ হোঈ৷৷
রামহি ভজহিং তাত সিব ধাতা৷ নর পাব কৈ কেতিক বাতা৷৷
জাসু চরন অজ সিব অনুরাগী৷ তাতু দ্রোহসুখ চহসি অভাগী৷৷
হর কহুহরি সেবক গুর কহেঊ৷ সুনি খগনাথ হৃদয মম দহেঊ৷৷
অধম জাতি মৈং বিদ্যা পাএ ভযউজথা অহি দূধ পিআএ৷
মানী কুটিল কুভাগ্য কুজাতী৷ গুর কর দ্রোহ করউদিনু রাতী৷৷
অতি দযাল গুর স্বল্প ন ক্রোধা৷ পুনি পুনি মোহি সিখাব সুবোধা৷৷
জেহি তে নীচ বড়াঈ পাবা৷ সো প্রথমহিং হতি তাহি নসাবা৷৷

2.6.106

चौपाई
আই বিভীষন পুনি সিরু নাযো৷ কৃপাসিংধু তব অনুজ বোলাযো৷৷
তুম্হ কপীস অংগদ নল নীলা৷ জামবংত মারুতি নযসীলা৷৷
সব মিলি জাহু বিভীষন সাথা৷ সারেহু তিলক কহেউ রঘুনাথা৷৷
পিতা বচন মৈং নগর ন আবউ আপু সরিস কপি অনুজ পঠাবউ৷
তুরত চলে কপি সুনি প্রভু বচনা৷ কীন্হী জাই তিলক কী রচনা৷৷
সাদর সিংহাসন বৈঠারী৷ তিলক সারি অস্তুতি অনুসারী৷৷
জোরি পানি সবহীং সির নাএ৷ সহিত বিভীষন প্রভু পহিং আএ৷৷
তব রঘুবীর বোলি কপি লীন্হে৷ কহি প্রিয বচন সুখী সব কীন্হে৷৷

2.2.106

चौपाई
কো কহি সকই প্রযাগ প্রভাঊ৷ কলুষ পুংজ কুংজর মৃগরাঊ৷৷
অস তীরথপতি দেখি সুহাবা৷ সুখ সাগর রঘুবর সুখু পাবা৷৷
কহি সিয লখনহি সখহি সুনাঈ৷ শ্রীমুখ তীরথরাজ বড়াঈ৷৷
করি প্রনামু দেখত বন বাগা৷ কহত মহাতম অতি অনুরাগা৷৷
এহি বিধি আই বিলোকী বেনী৷ সুমিরত সকল সুমংগল দেনী৷৷
মুদিত নহাই কীন্হি সিব সেবা৷ পুজি জথাবিধি তীরথ দেবা৷৷
তব প্রভু ভরদ্বাজ পহিং আএ৷ করত দংডবত মুনি উর লাএ৷৷
মুনি মন মোদ ন কছু কহি জাই৷ ব্রহ্মানংদ রাসি জনু পাঈ৷৷

2.1.106

चौपाई
হরি হর বিমুখ ধর্ম রতি নাহীং৷ তে নর তহসপনেহুনহিং জাহীং৷৷
তেহি গিরি পর বট বিটপ বিসালা৷ নিত নূতন সুংদর সব কালা৷৷
ত্রিবিধ সমীর সুসীতলি ছাযা৷ সিব বিশ্রাম বিটপ শ্রুতি গাযা৷৷
এক বার তেহি তর প্রভু গযঊ৷ তরু বিলোকি উর অতি সুখু ভযঊ৷৷
নিজ কর ডাসি নাগরিপু ছালা৷ বৈঠৈ সহজহিং সংভু কৃপালা৷৷
কুংদ ইংদু দর গৌর সরীরা৷ ভুজ প্রলংব পরিধন মুনিচীরা৷৷
তরুন অরুন অংবুজ সম চরনা৷ নখ দুতি ভগত হৃদয তম হরনা৷৷
ভুজগ ভূতি ভূষন ত্রিপুরারী৷ আননু সরদ চংদ ছবি হারী৷৷

1.7.106

चौपाई
एक बार गुर लीन्ह बोलाई। मोहि नीति बहु भाँति सिखाई।।
सिव सेवा कर फल सुत सोई। अबिरल भगति राम पद होई।।
रामहि भजहिं तात सिव धाता। नर पावँर कै केतिक बाता।।
जासु चरन अज सिव अनुरागी। तातु द्रोहँ सुख चहसि अभागी।।
हर कहुँ हरि सेवक गुर कहेऊ। सुनि खगनाथ हृदय मम दहेऊ।।
अधम जाति मैं बिद्या पाएँ। भयउँ जथा अहि दूध पिआएँ।।
मानी कुटिल कुभाग्य कुजाती। गुर कर द्रोह करउँ दिनु राती।।
अति दयाल गुर स्वल्प न क्रोधा। पुनि पुनि मोहि सिखाव सुबोधा।।
जेहि ते नीच बड़ाई पावा। सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा।।

1.6.106

चौपाई
आइ बिभीषन पुनि सिरु नायो। कृपासिंधु तब अनुज बोलायो।।
तुम्ह कपीस अंगद नल नीला। जामवंत मारुति नयसीला।।
सब मिलि जाहु बिभीषन साथा। सारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा।।
पिता बचन मैं नगर न आवउँ। आपु सरिस कपि अनुज पठावउँ।।
तुरत चले कपि सुनि प्रभु बचना। कीन्ही जाइ तिलक की रचना।।
सादर सिंहासन बैठारी। तिलक सारि अस्तुति अनुसारी।।
जोरि पानि सबहीं सिर नाए। सहित बिभीषन प्रभु पहिं आए।।
तब रघुबीर बोलि कपि लीन्हे। कहि प्रिय बचन सुखी सब कीन्हे।।

1.2.106

चौपाई
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा।।
कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्रीमुख तीरथराज बड़ाई।।
करि प्रनामु देखत बन बागा। कहत महातम अति अनुरागा।।
एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी। सुमिरत सकल सुमंगल देनी।।
मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा। पुजि जथाबिधि तीरथ देवा।।
तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए। करत दंडवत मुनि उर लाए।।
मुनि मन मोद न कछु कहि जाइ। ब्रह्मानंद रासि जनु पाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.106

चौपाई
हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं।।
तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला।।
त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया। सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया।।
एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ। तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ।।
निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठै सहजहिं संभु कृपाला।।
कुंद इंदु दर गौर सरीरा। भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा।।
तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना।।
भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी। आननु सरद चंद छबि हारी।।

Pages

Subscribe to RSS - 106