113

3.2.113

चौपाई
જે પુર ગા બસહિં મગ માહીં। તિન્હહિ નાગ સુર નગર સિહાહીં।।
કેહિ સુકૃતીં કેહિ ઘરીં બસાએ। ધન્ય પુન્યમય પરમ સુહાએ।।
જહજહરામ ચરન ચલિ જાહીં। તિન્હ સમાન અમરાવતિ નાહીં।।
પુન્યપુંજ મગ નિકટ નિવાસી। તિન્હહિ સરાહહિં સુરપુરબાસી।।
જે ભરિ નયન બિલોકહિં રામહિ। સીતા લખન સહિત ઘનસ્યામહિ।।
જે સર સરિત રામ અવગાહહિં। તિન્હહિ દેવ સર સરિત સરાહહિં।।
જેહિ તરુ તર પ્રભુ બૈઠહિં જાઈ। કરહિં કલપતરુ તાસુ બડ઼ાઈ।।
પરસિ રામ પદ પદુમ પરાગા। માનતિ ભૂમિ ભૂરિ નિજ ભાગા।।

3.1.113

चौपाई
તદપિ અસંકા કીન્હિહુ સોઈ। કહત સુનત સબ કર હિત હોઈ।।
જિન્હ હરિ કથા સુની નહિં કાના। શ્રવન રંધ્ર અહિભવન સમાના।।
નયનન્હિ સંત દરસ નહિં દેખા। લોચન મોરપંખ કર લેખા।।
તે સિર કટુ તુંબરિ સમતૂલા। જે ન નમત હરિ ગુર પદ મૂલા।।
જિન્હ હરિભગતિ હૃદયનહિં આની। જીવત સવ સમાન તેઇ પ્રાની।।
જો નહિં કરઇ રામ ગુન ગાના। જીહ સો દાદુર જીહ સમાના।।
કુલિસ કઠોર નિઠુર સોઇ છાતી। સુનિ હરિચરિત ન જો હરષાતી।।
ગિરિજા સુનહુ રામ કૈ લીલા। સુર હિત દનુજ બિમોહનસીલા।।

2.7.113

चौपाई
সুনু খগেস নহিং কছু রিষি দূষন৷ উর প্রেরক রঘুবংস বিভূষন৷৷
কৃপাসিংধু মুনি মতি করি ভোরী৷ লীন্হি প্রেম পরিচ্ছা মোরী৷৷
মন বচ ক্রম মোহি নিজ জন জানা৷ মুনি মতি পুনি ফেরী ভগবানা৷৷
রিষি মম মহত সীলতা দেখী৷ রাম চরন বিস্বাস বিসেষী৷৷
অতি বিসময পুনি পুনি পছিতাঈ৷ সাদর মুনি মোহি লীন্হ বোলাঈ৷৷
মম পরিতোষ বিবিধ বিধি কীন্হা৷ হরষিত রামমংত্র তব দীন্হা৷৷
বালকরূপ রাম কর ধ্যানা৷ কহেউ মোহি মুনি কৃপানিধানা৷৷
সুংদর সুখদ মিহি অতি ভাবা৷ সো প্রথমহিং মৈং তুম্হহি সুনাবা৷৷
মুনি মোহি কছুক কাল তহরাখা৷ রামচরিতমানস তব ভাষা৷৷

2.6.113

छंद
জয রাম সোভা ধাম৷ দাযক প্রনত বিশ্রাম৷৷
ধৃত ত্রোন বর সর চাপ৷ ভুজদংড প্রবল প্রতাপ৷৷1৷৷
জয দূষনারি খরারি৷ মর্দন নিসাচর ধারি৷৷
যহ দুষ্ট মারেউ নাথ৷ ভএ দেব সকল সনাথ৷৷2৷৷
জয হরন ধরনী ভার৷ মহিমা উদার অপার৷৷
জয রাবনারি কৃপাল৷ কিএ জাতুধান বিহাল৷৷3৷৷
লংকেস অতি বল গর্ব৷ কিএ বস্য সুর গংধর্ব৷৷
মুনি সিদ্ধ নর খগ নাগ৷ হঠি পংথ সব কেং লাগ৷৷4৷৷
পরদ্রোহ রত অতি দুষ্ট৷ পাযো সো ফলু পাপিষ্ট৷৷
অব সুনহু দীন দযাল৷ রাজীব নযন বিসাল৷৷5৷৷
মোহি রহা অতি অভিমান৷ নহিং কোউ মোহি সমান৷৷

2.2.113

चौपाई
জে পুর গা বসহিং মগ মাহীং৷ তিন্হহি নাগ সুর নগর সিহাহীং৷৷
কেহি সুকৃতীং কেহি ঘরীং বসাএ৷ ধন্য পুন্যময পরম সুহাএ৷৷
জহজহরাম চরন চলি জাহীং৷ তিন্হ সমান অমরাবতি নাহীং৷৷
পুন্যপুংজ মগ নিকট নিবাসী৷ তিন্হহি সরাহহিং সুরপুরবাসী৷৷
জে ভরি নযন বিলোকহিং রামহি৷ সীতা লখন সহিত ঘনস্যামহি৷৷
জে সর সরিত রাম অবগাহহিং৷ তিন্হহি দেব সর সরিত সরাহহিং৷৷
জেহি তরু তর প্রভু বৈঠহিং জাঈ৷ করহিং কলপতরু তাসু বড়াঈ৷৷
পরসি রাম পদ পদুম পরাগা৷ মানতি ভূমি ভূরি নিজ ভাগা৷৷

2.1.113

चौपाई
তদপি অসংকা কীন্হিহু সোঈ৷ কহত সুনত সব কর হিত হোঈ৷৷
জিন্হ হরি কথা সুনী নহিং কানা৷ শ্রবন রংধ্র অহিভবন সমানা৷৷
নযনন্হি সংত দরস নহিং দেখা৷ লোচন মোরপংখ কর লেখা৷৷
তে সির কটু তুংবরি সমতূলা৷ জে ন নমত হরি গুর পদ মূলা৷৷
জিন্হ হরিভগতি হৃদযনহিং আনী৷ জীবত সব সমান তেই প্রানী৷৷
জো নহিং করই রাম গুন গানা৷ জীহ সো দাদুর জীহ সমানা৷৷
কুলিস কঠোর নিঠুর সোই ছাতী৷ সুনি হরিচরিত ন জো হরষাতী৷৷
গিরিজা সুনহু রাম কৈ লীলা৷ সুর হিত দনুজ বিমোহনসীলা৷৷

1.7.113

चौपाई
सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन। उर प्रेरक रघुबंस बिभूषन।।
कृपासिंधु मुनि मति करि भोरी। लीन्हि प्रेम परिच्छा मोरी।।
मन बच क्रम मोहि निज जन जाना। मुनि मति पुनि फेरी भगवाना।।
रिषि मम महत सीलता देखी। राम चरन बिस्वास बिसेषी।।
अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई। सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई।।
मम परितोष बिबिध बिधि कीन्हा। हरषित राममंत्र तब दीन्हा।।
बालकरूप राम कर ध्याना। कहेउ मोहि मुनि कृपानिधाना।।
सुंदर सुखद मिहि अति भावा। सो प्रथमहिं मैं तुम्हहि सुनावा।।
मुनि मोहि कछुक काल तहँ राखा। रामचरितमानस तब भाषा।।

1.6.113

छंद
जय राम सोभा धाम। दायक प्रनत बिश्राम।।
धृत त्रोन बर सर चाप। भुजदंड प्रबल प्रताप।।1।।
जय दूषनारि खरारि। मर्दन निसाचर धारि।।
यह दुष्ट मारेउ नाथ। भए देव सकल सनाथ।।2।।
जय हरन धरनी भार। महिमा उदार अपार।।
जय रावनारि कृपाल। किए जातुधान बिहाल।।3।।
लंकेस अति बल गर्ब। किए बस्य सुर गंधर्ब।।
मुनि सिद्ध नर खग नाग। हठि पंथ सब कें लाग।।4।।
परद्रोह रत अति दुष्ट। पायो सो फलु पापिष्ट।।
अब सुनहु दीन दयाल। राजीव नयन बिसाल।।5।।
मोहि रहा अति अभिमान। नहिं कोउ मोहि समान।।

1.2.113

चौपाई
जे पुर गाँव बसहिं मग माहीं। तिन्हहि नाग सुर नगर सिहाहीं।।
केहि सुकृतीं केहि घरीं बसाए। धन्य पुन्यमय परम सुहाए।।
जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं। तिन्ह समान अमरावति नाहीं।।
पुन्यपुंज मग निकट निवासी। तिन्हहि सराहहिं सुरपुरबासी।।
जे भरि नयन बिलोकहिं रामहि। सीता लखन सहित घनस्यामहि।।
जे सर सरित राम अवगाहहिं। तिन्हहि देव सर सरित सराहहिं।।
जेहि तरु तर प्रभु बैठहिं जाई। करहिं कलपतरु तासु बड़ाई।।
परसि राम पद पदुम परागा। मानति भूमि भूरि निज भागा।।

1.1.113

चौपाई
तदपि असंका कीन्हिहु सोई। कहत सुनत सब कर हित होई।।
जिन्ह हरि कथा सुनी नहिं काना। श्रवन रंध्र अहिभवन समाना।।
नयनन्हि संत दरस नहिं देखा। लोचन मोरपंख कर लेखा।।
ते सिर कटु तुंबरि समतूला। जे न नमत हरि गुर पद मूला।।
जिन्ह हरिभगति हृदयँ नहिं आनी। जीवत सव समान तेइ प्रानी।।
जो नहिं करइ राम गुन गाना। जीह सो दादुर जीह समाना।।
कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती। सुनि हरिचरित न जो हरषाती।।
गिरिजा सुनहु राम कै लीला। सुर हित दनुज बिमोहनसीला।।

दोहा/सोरठा

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