124

4.1.124

चौपाई
ತಾಸು ಶ್ರಾಪ ಹರಿ ದೀನ್ಹ ಪ್ರಮಾನಾ. ಕೌತುಕನಿಧಿ ಕೃಪಾಲ ಭಗವಾನಾ..
ತಹಾಜಲಂಧರ ರಾವನ ಭಯಊ. ರನ ಹತಿ ರಾಮ ಪರಮ ಪದ ದಯಊ..
ಏಕ ಜನಮ ಕರ ಕಾರನ ಏಹಾ. ಜೇಹಿ ಲಾಗಿ ರಾಮ ಧರೀ ನರದೇಹಾ..
ಪ್ರತಿ ಅವತಾರ ಕಥಾ ಪ್ರಭು ಕೇರೀ. ಸುನು ಮುನಿ ಬರನೀ ಕಬಿನ್ಹ ಘನೇರೀ..
ನಾರದ ಶ್ರಾಪ ದೀನ್ಹ ಏಕ ಬಾರಾ. ಕಲಪ ಏಕ ತೇಹಿ ಲಗಿ ಅವತಾರಾ..
ಗಿರಿಜಾ ಚಕಿತ ಭಈ ಸುನಿ ಬಾನೀ. ನಾರದ ಬಿಷ್ನುಭಗತ ಪುನಿ ಗ್ಯಾನಿ..
ಕಾರನ ಕವನ ಶ್ರಾಪ ಮುನಿ ದೀನ್ಹಾ. ಕಾ ಅಪರಾಧ ರಮಾಪತಿ ಕೀನ್ಹಾ..
ಯಹ ಪ್ರಸಂಗ ಮೋಹಿ ಕಹಹು ಪುರಾರೀ. ಮುನಿ ಮನ ಮೋಹ ಆಚರಜ ಭಾರೀ..

3.7.124

चौपाई
સુમિરિ રામ કે ગુન ગન નાના। પુનિ પુનિ હરષ ભુસુંડિ સુજાના।।
મહિમા નિગમ નેતિ કરિ ગાઈ। અતુલિત બલ પ્રતાપ પ્રભુતાઈ।।
સિવ અજ પૂજ્ય ચરન રઘુરાઈ। મો પર કૃપા પરમ મૃદુલાઈ।।
અસ સુભાઉ કહુસુનઉન દેખઉ કેહિ ખગેસ રઘુપતિ સમ લેખઉ।
સાધક સિદ્ધ બિમુક્ત ઉદાસી। કબિ કોબિદ કૃતગ્ય સંન્યાસી।।
જોગી સૂર સુતાપસ ગ્યાની। ધર્મ નિરત પંડિત બિગ્યાની।।
તરહિં ન બિનુ સેએમમ સ્વામી। રામ નમામિ નમામિ નમામી।।
સરન ગએમો સે અઘ રાસી। હોહિં સુદ્ધ નમામિ અબિનાસી।।

3.2.124

चौपाई
અજહુજાસુ ઉર સપનેહુકાઊ। બસહુલખનુ સિય રામુ બટાઊ।।
રામ ધામ પથ પાઇહિ સોઈ। જો પથ પાવ કબહુમુનિ કોઈ।।
તબ રઘુબીર શ્રમિત સિય જાની। દેખિ નિકટ બટુ સીતલ પાની।।
તહબસિ કંદ મૂલ ફલ ખાઈ। પ્રાત નહાઇ ચલે રઘુરાઈ।।
દેખત બન સર સૈલ સુહાએ। બાલમીકિ આશ્રમ પ્રભુ આએ।।
રામ દીખ મુનિ બાસુ સુહાવન। સુંદર ગિરિ કાનનુ જલુ પાવન।।
સરનિ સરોજ બિટપ બન ફૂલે। ગુંજત મંજુ મધુપ રસ ભૂલે।।
ખગ મૃગ બિપુલ કોલાહલ કરહીં। બિરહિત બૈર મુદિત મન ચરહીં।।

3.1.124

चौपाई
તાસુ શ્રાપ હરિ દીન્હ પ્રમાના। કૌતુકનિધિ કૃપાલ ભગવાના।।
તહાજલંધર રાવન ભયઊ। રન હતિ રામ પરમ પદ દયઊ।।
એક જનમ કર કારન એહા। જેહિ લાગિ રામ ધરી નરદેહા।।
પ્રતિ અવતાર કથા પ્રભુ કેરી। સુનુ મુનિ બરની કબિન્હ ઘનેરી।।
નારદ શ્રાપ દીન્હ એક બારા। કલપ એક તેહિ લગિ અવતારા।।
ગિરિજા ચકિત ભઈ સુનિ બાની। નારદ બિષ્નુભગત પુનિ ગ્યાનિ।।
કારન કવન શ્રાપ મુનિ દીન્હા। કા અપરાધ રમાપતિ કીન્હા।।
યહ પ્રસંગ મોહિ કહહુ પુરારી। મુનિ મન મોહ આચરજ ભારી।।

2.7.124

चौपाई
সুমিরি রাম কে গুন গন নানা৷ পুনি পুনি হরষ ভুসুংডি সুজানা৷৷
মহিমা নিগম নেতি করি গাঈ৷ অতুলিত বল প্রতাপ প্রভুতাঈ৷৷
সিব অজ পূজ্য চরন রঘুরাঈ৷ মো পর কৃপা পরম মৃদুলাঈ৷৷
অস সুভাউ কহুসুনউন দেখউ কেহি খগেস রঘুপতি সম লেখউ৷
সাধক সিদ্ধ বিমুক্ত উদাসী৷ কবি কোবিদ কৃতগ্য সংন্যাসী৷৷
জোগী সূর সুতাপস গ্যানী৷ ধর্ম নিরত পংডিত বিগ্যানী৷৷
তরহিং ন বিনু সেএমম স্বামী৷ রাম নমামি নমামি নমামী৷৷
সরন গএমো সে অঘ রাসী৷ হোহিং সুদ্ধ নমামি অবিনাসী৷৷

2.2.124

चौपाई
অজহুজাসু উর সপনেহুকাঊ৷ বসহুলখনু সিয রামু বটাঊ৷৷
রাম ধাম পথ পাইহি সোঈ৷ জো পথ পাব কবহুমুনি কোঈ৷৷
তব রঘুবীর শ্রমিত সিয জানী৷ দেখি নিকট বটু সীতল পানী৷৷
তহবসি কংদ মূল ফল খাঈ৷ প্রাত নহাই চলে রঘুরাঈ৷৷
দেখত বন সর সৈল সুহাএ৷ বালমীকি আশ্রম প্রভু আএ৷৷
রাম দীখ মুনি বাসু সুহাবন৷ সুংদর গিরি কাননু জলু পাবন৷৷
সরনি সরোজ বিটপ বন ফূলে৷ গুংজত মংজু মধুপ রস ভূলে৷৷
খগ মৃগ বিপুল কোলাহল করহীং৷ বিরহিত বৈর মুদিত মন চরহীং৷৷

2.1.124

चौपाई
তাসু শ্রাপ হরি দীন্হ প্রমানা৷ কৌতুকনিধি কৃপাল ভগবানা৷৷
তহাজলংধর রাবন ভযঊ৷ রন হতি রাম পরম পদ দযঊ৷৷
এক জনম কর কারন এহা৷ জেহি লাগি রাম ধরী নরদেহা৷৷
প্রতি অবতার কথা প্রভু কেরী৷ সুনু মুনি বরনী কবিন্হ ঘনেরী৷৷
নারদ শ্রাপ দীন্হ এক বারা৷ কলপ এক তেহি লগি অবতারা৷৷
গিরিজা চকিত ভঈ সুনি বানী৷ নারদ বিষ্নুভগত পুনি গ্যানি৷৷
কারন কবন শ্রাপ মুনি দীন্হা৷ কা অপরাধ রমাপতি কীন্হা৷৷
যহ প্রসংগ মোহি কহহু পুরারী৷ মুনি মন মোহ আচরজ ভারী৷৷

1.7.124

चौपाई
सुमिरि राम के गुन गन नाना। पुनि पुनि हरष भुसुंडि सुजाना।।
महिमा निगम नेति करि गाई। अतुलित बल प्रताप प्रभुताई।।
सिव अज पूज्य चरन रघुराई। मो पर कृपा परम मृदुलाई।।
अस सुभाउ कहुँ सुनउँ न देखउँ। केहि खगेस रघुपति सम लेखउँ।।
साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी। कबि कोबिद कृतग्य संन्यासी।।
जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी।।
तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी।।
सरन गएँ मो से अघ रासी। होहिं सुद्ध नमामि अबिनासी।।

1.2.124

चौपाई
अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ। बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ।।
राम धाम पथ पाइहि सोई। जो पथ पाव कबहुँ मुनि कोई।।
तब रघुबीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु सीतल पानी।।
तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।।
देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए।।
राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन।।
सरनि सरोज बिटप बन फूले। गुंजत मंजु मधुप रस भूले।।
खग मृग बिपुल कोलाहल करहीं। बिरहित बैर मुदित मन चरहीं।।

दोहा/सोरठा

1.1.124

चौपाई
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना। कौतुकनिधि कृपाल भगवाना।।
तहाँ जलंधर रावन भयऊ। रन हति राम परम पद दयऊ।।
एक जनम कर कारन एहा। जेहि लागि राम धरी नरदेहा।।
प्रति अवतार कथा प्रभु केरी। सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी।।
नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा।।
गिरिजा चकित भई सुनि बानी। नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि।।
कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा। का अपराध रमापति कीन्हा।।
यह प्रसंग मोहि कहहु पुरारी। मुनि मन मोह आचरज भारी।।

दोहा/सोरठा

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