24

2.3.24

चौपाई
সুনহু প্রিযা ব্রত রুচির সুসীলা৷ মৈং কছু করবি ললিত নরলীলা৷৷
তুম্হ পাবক মহুকরহু নিবাসা৷ জৌ লগি করৌং নিসাচর নাসা৷৷
জবহিং রাম সব কহা বখানী৷ প্রভু পদ ধরি হিযঅনল সমানী৷৷
নিজ প্রতিবিংব রাখি তহসীতা৷ তৈসই সীল রুপ সুবিনীতা৷৷
লছিমনহূযহ মরমু ন জানা৷ জো কছু চরিত রচা ভগবানা৷৷
দসমুখ গযউ জহামারীচা৷ নাই মাথ স্বারথ রত নীচা৷৷
নবনি নীচ কৈ অতি দুখদাঈ৷ জিমি অংকুস ধনু উরগ বিলাঈ৷৷
ভযদাযক খল কৈ প্রিয বানী৷ জিমি অকাল কে কুসুম ভবানী৷৷

2.2.24

चौपाई
বাল সখা সুন হিযহরষাহীং৷ মিলি দস পা রাম পহিং জাহীং৷৷
প্রভু আদরহিং প্রেমু পহিচানী৷ পূহিং কুসল খেম মৃদু বানী৷৷
ফিরহিং ভবন প্রিয আযসু পাঈ৷ করত পরসপর রাম বড়াঈ৷৷
কো রঘুবীর সরিস সংসারা৷ সীলু সনেহ নিবাহনিহারা৷
জেংহি জেংহি জোনি করম বস ভ্রমহীং৷ তহতহঈসু দেউ যহ হমহীং৷৷
সেবক হম স্বামী সিযনাহূ৷ হোউ নাত যহ ওর নিবাহূ৷৷
অস অভিলাষু নগর সব কাহূ৷ কৈকযসুতা হ্দযঅতি দাহূ৷৷
কো ন কুসংগতি পাই নসাঈ৷ রহই ন নীচ মতেং চতুরাঈ৷৷

2.1.24

चौपाई
রাম ভগত হিত নর তনু ধারী৷ সহি সংকট কিএ সাধু সুখারী৷৷
নামু সপ্রেম জপত অনযাসা৷ ভগত হোহিং মুদ মংগল বাসা৷৷
রাম এক তাপস তিয তারী৷ নাম কোটি খল কুমতি সুধারী৷৷
রিষি হিত রাম সুকেতুসুতা কী৷ সহিত সেন সুত কীন্হ বিবাকী৷৷
সহিত দোষ দুখ দাস দুরাসা৷ দলই নামু জিমি রবি নিসি নাসা৷৷
ভংজেউ রাম আপু ভব চাপূ৷ ভব ভয ভংজন নাম প্রতাপূ৷৷
দংডক বনু প্রভু কীন্হ সুহাবন৷ জন মন অমিত নাম কিএ পাবন৷৷৷
নিসিচর নিকর দলে রঘুনংদন৷ নামু সকল কলি কলুষ নিকংদন৷৷

1.7.24

चौपाई
कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे।।
श्रुति पथ पालक धर्म धुरंधर। गुनातीत अरु भोग पुरंदर।।
पति अनुकूल सदा रह सीता। सोभा खानि सुसील बिनीता।।
जानति कृपासिंधु प्रभुताई। सेवति चरन कमल मन लाई।।
जद्यपि गृहँ सेवक सेवकिनी। बिपुल सदा सेवा बिधि गुनी।।
निज कर गृह परिचरजा करई। रामचंद्र आयसु अनुसरई।।
जेहि बिधि कृपासिंधु सुख मानइ। सोइ कर श्री सेवा बिधि जानइ।।
कौसल्यादि सासु गृह माहीं। सेवइ सबन्हि मान मद नाहीं।।
उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता। जगदंबा संततमनिंदिता।।

1.6.24

चौपाई
धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा।।
नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई।।
अंगद स्वामिभक्त तव जाती। प्रभु गुन कस न कहसि एहि भाँती।।
मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना।।
कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई।।
बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा।।
सोइ बिचारि तव प्रकृति सुहाई। दसकंधर मैं कीन्हि ढिठाई।।
देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा।।
जौं असि मति पितु खाए कीसा। कहि अस बचन हँसा दससीसा।।

1.5.24

चौपाई
जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।।
बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।।
मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।।
उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।।
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।।
सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए।
नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।।
आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।।
सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।।

1.4.24

चौपाई
कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा।।
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिं।।
लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलइ न जल घन गहन भुलाने।।
मन हनुमान कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिनु जल पाना।।
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबिर एक कौतुक पेखा।।
चक्रबाक बक हंस उड़ाहीं। बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं।।
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा। सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा।।
आगें कै हनुमंतहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा।।

1.3.24

चौपाई
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला।।
तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा।।
जबहिं राम सब कहा बखानी। प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी।।
निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता। तैसइ सील रुप सुबिनीता।।
लछिमनहूँ यह मरमु न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना।।
दसमुख गयउ जहाँ मारीचा। नाइ माथ स्वारथ रत नीचा।।
नवनि नीच कै अति दुखदाई। जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई।।
भयदायक खल कै प्रिय बानी। जिमि अकाल के कुसुम भवानी।।

दोहा/सोरठा

1.2.24

चौपाई
बाल सखा सुन हियँ हरषाहीं। मिलि दस पाँच राम पहिं जाहीं।।
प्रभु आदरहिं प्रेमु पहिचानी। पूँछहिं कुसल खेम मृदु बानी।।
फिरहिं भवन प्रिय आयसु पाई। करत परसपर राम बड़ाई।।
को रघुबीर सरिस संसारा। सीलु सनेह निबाहनिहारा।
जेंहि जेंहि जोनि करम बस भ्रमहीं। तहँ तहँ ईसु देउ यह हमहीं।।
सेवक हम स्वामी सियनाहू। होउ नात यह ओर निबाहू।।
अस अभिलाषु नगर सब काहू। कैकयसुता ह्दयँ अति दाहू।।
को न कुसंगति पाइ नसाई। रहइ न नीच मतें चतुराई।।

दोहा/सोरठा

1.1.24

चौपाई
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि संकट किए साधु सुखारी।।
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मंगल बासा।।
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी।।
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी।।
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा।।
भंजेउ राम आपु भव चापू। भव भय भंजन नाम प्रतापू।।
दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन।।।
निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन।।

दोहा/सोरठा

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