25

2.3.25

चौपाई
দসমুখ সকল কথা তেহি আগেং৷ কহী সহিত অভিমান অভাগেং৷৷
হোহু কপট মৃগ তুম্হ ছলকারী৷ জেহি বিধি হরি আনৌ নৃপনারী৷৷
তেহিং পুনি কহা সুনহু দসসীসা৷ তে নররুপ চরাচর ঈসা৷৷
তাসোং তাত বযরু নহিং কীজে৷ মারেং মরিঅ জিআএজীজৈ৷৷
মুনি মখ রাখন গযউ কুমারা৷ বিনু ফর সর রঘুপতি মোহি মারা৷৷
সত জোজন আযউছন মাহীং৷ তিন্হ সন বযরু কিএভল নাহীং৷৷
ভই মম কীট ভৃংগ কী নাঈ৷ জহতহমৈং দেখউদোউ ভাঈ৷৷
জৌং নর তাত তদপি অতি সূরা৷ তিন্হহি বিরোধি ন আইহি পূরা৷৷

2.2.25

चौपाई
কোপভবন সুনি সকুচেউ রাউ৷ ভয বস অগহুড় পরই ন পাঊ৷৷
সুরপতি বসই বাহল জাকে৷ নরপতি সকল রহহিং রুখ তাকেং৷৷
সো সুনি তিয রিস গযউ সুখাঈ৷ দেখহু কাম প্রতাপ বড়াঈ৷৷
সূল কুলিস অসি অবনিহারে৷ তে রতিনাথ সুমন সর মারে৷৷
সভয নরেসু প্রিযা পহিং গযঊ৷ দেখি দসা দুখু দারুন ভযঊ৷৷
ভূমি সযন পটু মোট পুরানা৷ দিএ ডারি তন ভূষণ নানা৷৷
কুমতিহি কসি কুবেষতা ফাবী৷ অন অহিবাতু সূচ জনু ভাবী৷৷
জাই নিকট নৃপু কহ মৃদু বানী৷ প্রানপ্রিযা কেহি হেতু রিসানী৷৷

2.1.25

चौपाई
রাম সুকংঠ বিভীষন দোঊ৷ রাখে সরন জান সবু কোঊ৷৷
নাম গরীব অনেক নেবাজে৷ লোক বেদ বর বিরিদ বিরাজে৷৷
রাম ভালু কপি কটকু বটোরা৷ সেতু হেতু শ্রমু কীন্হ ন থোরা৷৷
নামু লেত ভবসিংধু সুখাহীং৷ করহু বিচারু সুজন মন মাহীং৷৷
রাম সকুল রন রাবনু মারা৷ সীয সহিত নিজ পুর পগু ধারা৷৷
রাজা রামু অবধ রজধানী৷ গাবত গুন সুর মুনি বর বানী৷৷
সেবক সুমিরত নামু সপ্রীতী৷ বিনু শ্রম প্রবল মোহ দলু জীতী৷৷
ফিরত সনেহমগন সুখ অপনেং৷ নাম প্রসাদ সোচ নহিং সপনেং৷৷

1.7.25

चौपाई
सेवहिं सानकूल सब भाई। राम चरन रति अति अधिकाई।।
प्रभु मुख कमल बिलोकत रहहीं। कबहुँ कृपाल हमहि कछु कहहीं।।
राम करहिं भ्रातन्ह पर प्रीती। नाना भाँति सिखावहिं नीती।।
हरषित रहहिं नगर के लोगा। करहिं सकल सुर दुर्लभ भोगा।।
अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं। श्रीरघुबीर चरन रति चहहीं।।
दुइ सुत सुन्दर सीताँ जाए। लव कुस बेद पुरानन्ह गाए।।
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर। हरि प्रतिबिंब मनहुँ अति सुंदर।।
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे। भए रूप गुन सील घनेरे।।

1.6.25

चौपाई
सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला।।
जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई।।
सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी।।
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला।।
जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई।।
जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे।।
जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी।।
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी।।

दोहा/सोरठा

1.5.25

चौपाई
पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।।
जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँमैं तिन्ह कै प्रभुताई।।
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।।
जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।।
रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।।
कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।।
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।।
पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।।
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।।

1.4.25

चौपाई
दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा। पूछें निज बृत्तांत सुनावा।।
तेहिं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सुरस सुंदर फल नाना।।
मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए। तासु निकट पुनि सब चलि आए।।
तेहिं सब आपनि कथा सुनाई। मैं अब जाब जहाँ रघुराई।।
मूदहु नयन बिबर तजि जाहू। पैहहु सीतहि जनि पछिताहू।।
नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा। ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा।।
सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा। जाइ कमल पद नाएसि माथा।।
नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही। अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही।।

दोहा/सोरठा

1.3.25

चौपाई
दसमुख सकल कथा तेहि आगें। कही सहित अभिमान अभागें।।
होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी। जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी।।
तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा। ते नररुप चराचर ईसा।।
तासों तात बयरु नहिं कीजे। मारें मरिअ जिआएँ जीजै।।
मुनि मख राखन गयउ कुमारा। बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा।।
सत जोजन आयउँ छन माहीं। तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं।।
भइ मम कीट भृंग की नाई। जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई।।
जौं नर तात तदपि अति सूरा। तिन्हहि बिरोधि न आइहि पूरा।।

दोहा/सोरठा

1.2.25

चौपाई
कोपभवन सुनि सकुचेउ राउ। भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ।।
सुरपति बसइ बाहँबल जाके। नरपति सकल रहहिं रुख ताकें।।
सो सुनि तिय रिस गयउ सुखाई। देखहु काम प्रताप बड़ाई।।
सूल कुलिस असि अँगवनिहारे। ते रतिनाथ सुमन सर मारे।।
सभय नरेसु प्रिया पहिं गयऊ। देखि दसा दुखु दारुन भयऊ।।
भूमि सयन पटु मोट पुराना। दिए डारि तन भूषण नाना।।
कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी। अन अहिवातु सूच जनु भाबी।।
जाइ निकट नृपु कह मृदु बानी। प्रानप्रिया केहि हेतु रिसानी।।

1.1.25

चौपाई
राम सुकंठ बिभीषन दोऊ। राखे सरन जान सबु कोऊ।।
नाम गरीब अनेक नेवाजे। लोक बेद बर बिरिद बिराजे।।
राम भालु कपि कटकु बटोरा। सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा।।
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं। करहु बिचारु सुजन मन माहीं।।
राम सकुल रन रावनु मारा। सीय सहित निज पुर पगु धारा।।
राजा रामु अवध रजधानी। गावत गुन सुर मुनि बर बानी।।
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती। बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती।।
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें। नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें।।

दोहा/सोरठा

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