27

2.3.27

चौपाई
তেহি বন নিকট দসানন গযঊ৷ তব মারীচ কপটমৃগ ভযঊ৷৷
অতি বিচিত্র কছু বরনি ন জাঈ৷ কনক দেহ মনি রচিত বনাঈ৷৷
সীতা পরম রুচির মৃগ দেখা৷ অংগ অংগ সুমনোহর বেষা৷৷
সুনহু দেব রঘুবীর কৃপালা৷ এহি মৃগ কর অতি সুংদর ছালা৷৷
সত্যসংধ প্রভু বধি করি এহী৷ আনহু চর্ম কহতি বৈদেহী৷৷
তব রঘুপতি জানত সব কারন৷ উঠে হরষি সুর কাজু সারন৷৷
মৃগ বিলোকি কটি পরিকর বাা৷ করতল চাপ রুচির সর সাা৷৷
প্রভু লছিমনিহি কহা সমুঝাঈ৷ ফিরত বিপিন নিসিচর বহু ভাঈ৷৷
সীতা কেরি করেহু রখবারী৷ বুধি বিবেক বল সময বিচারী৷৷

2.2.27

चौपाई
পুনি কহ রাউ সুহ্রদ জিযজানী৷ প্রেম পুলকি মৃদু মংজুল বানী৷৷
ভামিনি ভযউ তোর মনভাবা৷ ঘর ঘর নগর অনংদ বধাবা৷৷
রামহি দেউকালি জুবরাজূ৷ সজহি সুলোচনি মংগল সাজূ৷৷
দলকি উঠেউ সুনি হ্রদউ কঠোরূ৷ জনু ছুই গযউ পাক বরতোরূ৷৷
ঐসিউ পীর বিহসি তেহি গোঈ৷ চোর নারি জিমি প্রগটি ন রোঈ৷৷
লখহিং ন ভূপ কপট চতুরাঈ৷ কোটি কুটিল মনি গুরূ পঢ়াঈ৷৷
জদ্যপি নীতি নিপুন নরনাহূ৷ নারিচরিত জলনিধি অবগাহূ৷৷
কপট সনেহু বঢ়াই বহোরী৷ বোলী বিহসি নযন মুহু মোরী৷৷

2.1.27

चौपाई
চহুজুগ তীনি কাল তিহুলোকা৷ ভএ নাম জপি জীব বিসোকা৷৷
বেদ পুরান সংত মত এহূ৷ সকল সুকৃত ফল রাম সনেহূ৷৷
ধ্যানু প্রথম জুগ মখবিধি দূজেং৷ দ্বাপর পরিতোষত প্রভু পূজেং৷৷
কলি কেবল মল মূল মলীনা৷ পাপ পযোনিধি জন জন মীনা৷৷
নাম কামতরু কাল করালা৷ সুমিরত সমন সকল জগ জালা৷৷
রাম নাম কলি অভিমত দাতা৷ হিত পরলোক লোক পিতু মাতা৷৷
নহিং কলি করম ন ভগতি বিবেকূ৷ রাম নাম অবলংবন একূ৷৷
কালনেমি কলি কপট নিধানূ৷ নাম সুমতি সমরথ হনুমানূ৷৷

1.7.27

चौपाई
नारदादि सनकादि मुनीसा। दरसन लागि कोसलाधीसा।।
दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं। देखि नगरु बिरागु बिसरावहिं।।
जातरूप मनि रचित अटारीं। नाना रंग रुचिर गच ढारीं।।
पुर चहुँ पास कोट अति सुंदर। रचे कँगूरा रंग रंग बर।।
नव ग्रह निकर अनीक बनाई। जनु घेरी अमरावति आई।।
महि बहु रंग रचित गच काँचा। जो बिलोकि मुनिबर मन नाचा।।
धवल धाम ऊपर नभ चुंबत। कलस मनहुँ रबि ससि दुति निंदत।।
बहु मनि रचित झरोखा भ्राजहिं। गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं।।

1.6.27

चौपाई
सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई।।
जौ खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही।।
मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला। राम बयर अस होइहि हाला।।
तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें।।
ते तव सिर कंदुक सम नाना। खेलहहिं भालु कीस चौगाना।।
जबहिं समर कोपहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक।।
तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा। अस बिचारि भजु राम उदारा।।
सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा।।

दोहा/सोरठा

1.5.27

चौपाई
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।।
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।।
कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।
तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु।।
मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा।।
कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।।
तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती।।

दोहा/सोरठा

1.4.27

चौपाई
एहि बिधि कथा कहहि बहु भाँती गिरि कंदराँ सुनी संपाती।।
बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा।।
आजु सबहि कहँ भच्छन करऊँ। दिन बहु चले अहार बिनु मरऊँ।।
कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा। आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा।।
डरपे गीध बचन सुनि काना। अब भा मरन सत्य हम जाना।।
कपि सब उठे गीध कहँ देखी। जामवंत मन सोच बिसेषी।।
कह अंगद बिचारि मन माहीं। धन्य जटायू सम कोउ नाहीं।।
राम काज कारन तनु त्यागी । हरि पुर गयउ परम बड़ भागी।।
सुनि खग हरष सोक जुत बानी । आवा निकट कपिन्ह भय मानी।।

1.3.27

चौपाई
तेहि बन निकट दसानन गयऊ। तब मारीच कपटमृग भयऊ।।
अति बिचित्र कछु बरनि न जाई। कनक देह मनि रचित बनाई।।
सीता परम रुचिर मृग देखा। अंग अंग सुमनोहर बेषा।।
सुनहु देव रघुबीर कृपाला। एहि मृग कर अति सुंदर छाला।।
सत्यसंध प्रभु बधि करि एही। आनहु चर्म कहति बैदेही।।
तब रघुपति जानत सब कारन। उठे हरषि सुर काजु सँवारन।।
मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा। करतल चाप रुचिर सर साँधा।।
प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई। फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई।।
सीता केरि करेहु रखवारी। बुधि बिबेक बल समय बिचारी।।

1.2.27

चौपाई
पुनि कह राउ सुह्रद जियँ जानी। प्रेम पुलकि मृदु मंजुल बानी।।
भामिनि भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा।।
रामहि देउँ कालि जुबराजू। सजहि सुलोचनि मंगल साजू।।
दलकि उठेउ सुनि ह्रदउ कठोरू। जनु छुइ गयउ पाक बरतोरू।।
ऐसिउ पीर बिहसि तेहि गोई। चोर नारि जिमि प्रगटि न रोई।।
लखहिं न भूप कपट चतुराई। कोटि कुटिल मनि गुरू पढ़ाई।।
जद्यपि नीति निपुन नरनाहू। नारिचरित जलनिधि अवगाहू।।
कपट सनेहु बढ़ाइ बहोरी। बोली बिहसि नयन मुहु मोरी।।

दोहा/सोरठा

1.1.27

चौपाई
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका।।
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू।।
ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें।।
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना।।
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला।।
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता।।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू।।
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू।।

दोहा/सोरठा

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