31

2.5.31

चौपाई
চলত মোহি চূড়ামনি দীন্হী৷ রঘুপতি হৃদযলাই সোই লীন্হী৷৷
নাথ জুগল লোচন ভরি বারী৷ বচন কহে কছু জনককুমারী৷৷
অনুজ সমেত গহেহু প্রভু চরনা৷ দীন বংধু প্রনতারতি হরনা৷৷
মন ক্রম বচন চরন অনুরাগী৷ কেহি অপরাধ নাথ হৌং ত্যাগী৷৷
অবগুন এক মোর মৈং মানা৷ বিছুরত প্রান ন কীন্হ পযানা৷৷
নাথ সো নযনন্হি কো অপরাধা৷ নিসরত প্রান করিহিং হঠি বাধা৷৷
বিরহ অগিনি তনু তূল সমীরা৷ স্বাস জরই ছন মাহিং সরীরা৷৷
নযন স্ত্রবহি জলু নিজ হিত লাগী৷ জরৈং ন পাব দেহ বিরহাগী৷
সীতা কে অতি বিপতি বিসালা৷ বিনহিং কহেং ভলি দীনদযালা৷৷

2.3.31

चौपाई
তব কহ গীধ বচন ধরি ধীরা ৷ সুনহু রাম ভংজন ভব ভীরা৷৷
নাথ দসানন যহ গতি কীন্হী৷ তেহি খল জনকসুতা হরি লীন্হী৷৷
লৈ দচ্ছিন দিসি গযউ গোসাঈ৷ বিলপতি অতি কুররী কী নাঈ৷৷
দরস লাগী প্রভু রাখেংউপ্রানা৷ চলন চহত অব কৃপানিধানা৷৷
রাম কহা তনু রাখহু তাতা৷ মুখ মুসকাই কহী তেহিং বাতা৷৷
জা কর নাম মরত মুখ আবা৷ অধমউ মুকুত হোঈ শ্রুতি গাবা৷৷
সো মম লোচন গোচর আগেং৷ রাখৌং দেহ নাথ কেহি খােং৷৷
জল ভরি নযন কহহিং রঘুরাঈ৷ তাত কর্ম নিজ তে গতিং পাঈ৷৷
পরহিত বস জিন্হ কে মন মাহীং৷ তিন্হ কহুজগ দুর্লভ কছু নাহীং৷৷

2.2.31

चौपाई
আগেং দীখি জরত রিস ভারী৷ মনহুরোষ তরবারি উঘারী৷৷
মূঠি কুবুদ্ধি ধার নিঠুরাঈ৷ ধরী কূবরীং সান বনাঈ৷৷
লখী মহীপ করাল কঠোরা৷ সত্য কি জীবনু লেইহি মোরা৷৷
বোলে রাউ কঠিন করি ছাতী৷ বানী সবিনয তাসু সোহাতী৷৷
প্রিযা বচন কস কহসি কুভাী৷ ভীর প্রতীতি প্রীতি করি হাী৷৷
মোরেং ভরতু রামু দুই আী৷ সত্য কহউকরি সংকরূ সাখী৷৷
অবসি দূতু মৈং পঠইব প্রাতা৷ ঐহহিং বেগি সুনত দোউ ভ্রাতা৷৷
সুদিন সোধি সবু সাজু সজাঈ৷ দেউভরত কহুরাজু বজাঈ৷৷

2.1.31

चौपाई
জম গন মুহমসি জগ জমুনা সী৷ জীবন মুকুতি হেতু জনু কাসী৷৷
রামহি প্রিয পাবনি তুলসী সী৷ তুলসিদাস হিত হিযহুলসী সী৷৷
সিবপ্রয মেকল সৈল সুতা সী৷ সকল সিদ্ধি সুখ সংপতি রাসী৷৷
সদগুন সুরগন অংব অদিতি সী৷ রঘুবর ভগতি প্রেম পরমিতি সী৷৷
তদপি কহী গুর বারহিং বারা৷ সমুঝি পরী কছু মতি অনুসারা৷৷
ভাষাবদ্ধ করবি মৈং সোঈ৷ মোরেং মন প্রবোধ জেহিং হোঈ৷৷
জস কছু বুধি বিবেক বল মেরেং৷ তস কহিহউহিযহরি কে প্রেরেং৷৷
নিজ সংদেহ মোহ ভ্রম হরনী৷ করউকথা ভব সরিতা তরনী৷৷
বুধ বিশ্রাম সকল জন রংজনি৷ রামকথা কলি কলুষ বিভংজনি৷৷

1.7.31

चौपाई
जब ते राम प्रताप खगेसा। उदित भयउ अति प्रबल दिनेसा।।
पूरि प्रकास रहेउ तिहुँ लोका। बहुतेन्ह सुख बहुतन मन सोका।।
जिन्हहि सोक ते कहउँ बखानी। प्रथम अबिद्या निसा नसानी।।
अघ उलूक जहँ तहाँ लुकाने। काम क्रोध कैरव सकुचाने।।
बिबिध कर्म गुन काल सुभाऊ। ए चकोर सुख लहहिं न काऊ।।
मत्सर मान मोह मद चोरा। इन्ह कर हुनर न कवनिहुँ ओरा।।
धरम तड़ाग ग्यान बिग्याना। ए पंकज बिकसे बिधि नाना।।
सुख संतोष बिराग बिबेका। बिगत सोक ए कोक अनेका।।

1.6.31

चौपाई
जौ अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई।।
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमूख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवन सव सम चौदह प्रानी।।
अस बिचारि खल बधउँ न तोही। अब जनि रिस उपजावसि मोही।।
सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा।।
रे कपि अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बड़ि कहसी।।
कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें।।

दोहा/सोरठा

1.5.31

चौपाई
चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।।
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी।।
अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।।
मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।।
अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।।
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।।
बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।।
नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी।
सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।।

1.3.31

चौपाई
तब कह गीध बचन धरि धीरा । सुनहु राम भंजन भव भीरा।।
नाथ दसानन यह गति कीन्ही। तेहि खल जनकसुता हरि लीन्ही।।
लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाई। बिलपति अति कुररी की नाई।।
दरस लागी प्रभु राखेंउँ प्राना। चलन चहत अब कृपानिधाना।।
राम कहा तनु राखहु ताता। मुख मुसकाइ कही तेहिं बाता।।
जा कर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होई श्रुति गावा।।
सो मम लोचन गोचर आगें। राखौं देह नाथ केहि खाँगें।।
जल भरि नयन कहहिं रघुराई। तात कर्म निज ते गतिं पाई।।
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं।।

1.2.31

चौपाई
आगें दीखि जरत रिस भारी। मनहुँ रोष तरवारि उघारी।।
मूठि कुबुद्धि धार निठुराई। धरी कूबरीं सान बनाई।।
लखी महीप कराल कठोरा। सत्य कि जीवनु लेइहि मोरा।।
बोले राउ कठिन करि छाती। बानी सबिनय तासु सोहाती।।
प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती।।
मोरें भरतु रामु दुइ आँखी। सत्य कहउँ करि संकरू साखी।।
अवसि दूतु मैं पठइब प्राता। ऐहहिं बेगि सुनत दोउ भ्राता।।
सुदिन सोधि सबु साजु सजाई। देउँ भरत कहुँ राजु बजाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.31

चौपाई
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा।। 
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई।।
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें। तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें।। 
निज संदेह मोह भ्रम हरनी। करउँ कथा भव सरिता तरनी।।
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि।। 
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी।।
रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।। 
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि।।
असुर सेन सम नरक निकंदिनि। साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि।। 

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