35

2.5.35

चौपाई
প্রভু পদ পংকজ নাবহিং সীসা৷ গরজহিং ভালু মহাবল কীসা৷৷
দেখী রাম সকল কপি সেনা৷ চিতই কৃপা করি রাজিব নৈনা৷৷
রাম কৃপা বল পাই কপিংদা৷ ভএ পচ্ছজুত মনহুগিরিংদা৷৷
হরষি রাম তব কীন্হ পযানা৷ সগুন ভএ সুংদর সুভ নানা৷৷
জাসু সকল মংগলময কীতী৷ তাসু পযান সগুন যহ নীতী৷৷
প্রভু পযান জানা বৈদেহীং৷ ফরকি বাম অ জনু কহি দেহীং৷৷
জোই জোই সগুন জানকিহি হোঈ৷ অসগুন ভযউ রাবনহি সোঈ৷৷
চলা কটকু কো বরনৈং পারা৷ গর্জহি বানর ভালু অপারা৷৷
নখ আযুধ গিরি পাদপধারী৷ চলে গগন মহি ইচ্ছাচারী৷৷
কেহরিনাদ ভালু কপি করহীং৷ ডগমগাহিং দিগ্গজ চিক্করহীং৷৷

2.3.35

चौपाई
পানি জোরি আগেং ভই ঠাঢ়ী৷ প্রভুহি বিলোকি প্রীতি অতি বাঢ়ী৷৷
কেহি বিধি অস্তুতি করৌ তুম্হারী৷ অধম জাতি মৈং জড়মতি ভারী৷৷
অধম তে অধম অধম অতি নারী৷ তিন্হ মহমৈং মতিমংদ অঘারী৷৷
কহ রঘুপতি সুনু ভামিনি বাতা৷ মানউএক ভগতি কর নাতা৷৷
জাতি পাি কুল ধর্ম বড়াঈ৷ ধন বল পরিজন গুন চতুরাঈ৷৷
ভগতি হীন নর সোহই কৈসা৷ বিনু জল বারিদ দেখিঅ জৈসা৷৷
নবধা ভগতি কহউতোহি পাহীং৷ সাবধান সুনু ধরু মন মাহীং৷৷
প্রথম ভগতি সংতন্হ কর সংগা৷ দূসরি রতি মম কথা প্রসংগা৷৷

2.2.35

चौपाई
ব্যাকুল রাউ সিথিল সব গাতা৷ করিনি কলপতরু মনহুনিপাতা৷৷
কংঠু সূখ মুখ আব ন বানী৷ জনু পাঠীনু দীন বিনু পানী৷৷
পুনি কহ কটু কঠোর কৈকেঈ৷ মনহুঘায মহুমাহুর দেঈ৷৷
জৌং অংতহুঅস করতবু রহেঊ৷ মাগু মাগু তুম্হ কেহিং বল কহেঊ৷৷
দুই কি হোই এক সময ভুআলা৷ হব ঠঠাই ফুলাউব গালা৷৷
দানি কহাউব অরু কৃপনাঈ৷ হোই কি খেম কুসল রৌতাঈ৷৷
ছাড়হু বচনু কি ধীরজু ধরহূ৷ জনি অবলা জিমি করুনা করহূ৷৷
তনু তিয তনয ধামু ধনু ধরনী৷ সত্যসংধ কহুতৃন সম বরনী৷৷

2.1.35

चौपाई
দরস পরস মজ্জন অরু পানা৷ হরই পাপ কহ বেদ পুরানা৷৷
নদী পুনীত অমিত মহিমা অতি৷ কহি ন সকই সারদ বিমলমতি৷৷
রাম ধামদা পুরী সুহাবনি৷ লোক সমস্ত বিদিত অতি পাবনি৷৷
চারি খানি জগ জীব অপারা৷ অবধ তজে তনু নহি সংসারা৷৷
সব বিধি পুরী মনোহর জানী৷ সকল সিদ্ধিপ্রদ মংগল খানী৷৷
বিমল কথা কর কীন্হ অরংভা৷ সুনত নসাহিং কাম মদ দংভা৷৷
রামচরিতমানস এহি নামা৷ সুনত শ্রবন পাইঅ বিশ্রামা৷৷
মন করি বিষয অনল বন জরঈ৷ হোই সুখী জৌ এহিং সর পরঈ৷৷
রামচরিতমানস মুনি ভাবন৷ বিরচেউ সংভু সুহাবন পাবন৷৷

1.7.35

चौपाई
देहु भगति रघुपति अति पावनि। त्रिबिध ताप भव दाप नसावनि।।
प्रनत काम सुरधेनु कलपतरु। होइ प्रसन्न दीजै प्रभु यह बरु।।
भव बारिधि कुंभज रघुनायक। सेवत सुलभ सकल सुख दायक।।
मन संभव दारुन दुख दारय। दीनबंधु समता बिस्तारय।।
आस त्रास इरिषादि निवारक। बिनय बिबेक बिरति बिस्तारक।।
भूप मौलि मन मंडन धरनी। देहि भगति संसृति सरि तरनी।।
मुनि मन मानस हंस निरंतर। चरन कमल बंदित अज संकर।।
रघुकुल केतु सेतु श्रुति रच्छक। काल करम सुभाउ गुन भच्छक।।
तारन तरन हरन सब दूषन। तुलसिदास प्रभु त्रिभुवन भूषन।।

1.6.35

चौपाई
कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे।।
गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा।।
गहसि न राम चरन सठ जाई। सुनत फिरा मन अति सकुचाई।।
भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई।।
सिंघासन बैठेउ सिर नाई। मानहुँ संपति सकल गँवाई।।
जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा।।
उमा राम की भृकुटि बिलासा। होइ बिस्व पुनि पावइ नासा।।
तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई। तासु दूत पन कहु किमि टरई।।
पुनि कपि कही नीति बिधि नाना। मान न ताहि कालु निअराना।।

1.5.35

चौपाई
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।।
देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।।
राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।।
हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।।
जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।।
प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।।
जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।।
चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।।
नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।।

1.3.35

चौपाई
पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी।।
केहि बिधि अस्तुति करौ तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी।।
अधम ते अधम अधम अति नारी। तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।।
कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता।।
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई। धन बल परिजन गुन चतुराई।।
भगति हीन नर सोहइ कैसा। बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।

1.2.35

चौपाई
ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता। करिनि कलपतरु मनहुँ निपाता।।
कंठु सूख मुख आव न बानी। जनु पाठीनु दीन बिनु पानी।।
पुनि कह कटु कठोर कैकेई। मनहुँ घाय महुँ माहुर देई।।
जौं अंतहुँ अस करतबु रहेऊ। मागु मागु तुम्ह केहिं बल कहेऊ।।
दुइ कि होइ एक समय भुआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला।।
दानि कहाउब अरु कृपनाई। होइ कि खेम कुसल रौताई।।
छाड़हु बचनु कि धीरजु धरहू। जनि अबला जिमि करुना करहू।।
तनु तिय तनय धामु धनु धरनी। सत्यसंध कहुँ तृन सम बरनी।।

दोहा/सोरठा

1.1.35

चौपाई
दरस परस मज्जन अरु पाना। हरइ पाप कह बेद पुराना।।
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारद बिमलमति।।
राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि।।
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजे तनु नहि संसारा।।
सब बिधि पुरी मनोहर जानी। सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी।।
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा।।
रामचरितमानस एहि नामा। सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा।।
मन करि विषय अनल बन जरई। होइ सुखी जौ एहिं सर परई।।
रामचरितमानस मुनि भावन। बिरचेउ संभु सुहावन पावन।।

Pages

Subscribe to RSS - 35