39

2.5.39

चौपाई
তাত রাম নহিং নর ভূপালা৷ ভুবনেস্বর কালহু কর কালা৷৷
ব্রহ্ম অনাময অজ ভগবংতা৷ ব্যাপক অজিত অনাদি অনংতা৷৷
গো দ্বিজ ধেনু দেব হিতকারী৷ কৃপাসিংধু মানুষ তনুধারী৷৷
জন রংজন ভংজন খল ব্রাতা৷ বেদ ধর্ম রচ্ছক সুনু ভ্রাতা৷৷
তাহি বযরু তজি নাইঅ মাথা৷ প্রনতারতি ভংজন রঘুনাথা৷৷
দেহু নাথ প্রভু কহুবৈদেহী৷ ভজহু রাম বিনু হেতু সনেহী৷৷
সরন গএপ্রভু তাহু ন ত্যাগা৷ বিস্ব দ্রোহ কৃত অঘ জেহি লাগা৷৷
জাসু নাম ত্রয তাপ নসাবন৷ সোই প্রভু প্রগট সমুঝু জিযরাবন৷৷

2.3.39

चौपाई
গুনাতীত সচরাচর স্বামী৷ রাম উমা সব অংতরজামী৷৷
কামিন্হ কৈ দীনতা দেখাঈ৷ ধীরন্হ কেং মন বিরতি দৃঢ়াঈ৷৷
ক্রোধ মনোজ লোভ মদ মাযা৷ ছূটহিং সকল রাম কীং দাযা৷৷
সো নর ইংদ্রজাল নহিং ভূলা৷ জা পর হোই সো নট অনুকূলা৷৷
উমা কহউমৈং অনুভব অপনা৷ সত হরি ভজনু জগত সব সপনা৷৷
পুনি প্রভু গএ সরোবর তীরা৷ পংপা নাম সুভগ গংভীরা৷৷
সংত হৃদয জস নির্মল বারী৷ বাে ঘাট মনোহর চারী৷৷
জহতহপিঅহিং বিবিধ মৃগ নীরা৷ জনু উদার গৃহ জাচক ভীরা৷৷

2.2.39

चौपाई
আনহু রামহি বেগি বোলাঈ৷ সমাচার তব পূেহু আঈ৷৷
চলেউ সুমংত্র রায রূখ জানী৷ লখী কুচালি কীন্হি কছু রানী৷৷
সোচ বিকল মগ পরই ন পাঊ৷ রামহি বোলি কহিহি কা রাঊ৷৷
উর ধরি ধীরজু গযউ দুআরেং৷ পূছিং সকল দেখি মনু মারেং৷৷
সমাধানু করি সো সবহী কা৷ গযউ জহাদিনকর কুল টীকা৷৷
রামু সুমংত্রহি আবত দেখা৷ আদরু কীন্হ পিতা সম লেখা৷৷
নিরখি বদনু কহি ভূপ রজাঈ৷ রঘুকুলদীপহি চলেউ লেবাঈ৷৷
রামু কুভাি সচিব স জাহীং৷ দেখি লোগ জহতহবিলখাহীং৷৷

2.1.39

चौपाई
জৌং করি কষ্ট জাই পুনি কোঈ৷ জাতহিং নীংদ জুড়াঈ হোঈ৷৷
জড়তা জাড় বিষম উর লাগা৷ গএহুন মজ্জন পাব অভাগা৷৷
করি ন জাই সর মজ্জন পানা৷ ফিরি আবই সমেত অভিমানা৷৷
জৌং বহোরি কোউ পূছন আবা৷ সর নিংদা করি তাহি বুঝাবা৷৷
সকল বিঘ্ন ব্যাপহি নহিং তেহী৷ রাম সুকৃপাবিলোকহিং জেহী৷৷
সোই সাদর সর মজ্জনু করঈ৷ মহা ঘোর ত্রযতাপ ন জরঈ৷৷
তে নর যহ সর তজহিং ন কাঊ৷ জিন্হ কে রাম চরন ভল ভাঊ৷৷
জো নহাই চহ এহিং সর ভাঈ৷ সো সতসংগ করউ মন লাঈ৷৷
অস মানস মানস চখ চাহী৷ ভই কবি বুদ্ধি বিমল অবগাহী৷৷

1.7.39

चौपाई
सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ।।
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कलपहि घालइ हरहाई।।
खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी। जरहिं सदा पर संपति देखी।।
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई। हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई।।
काम क्रोध मद लोभ परायन। निर्दय कपटी कुटिल मलायन।।
बयरु अकारन सब काहू सों। जो कर हित अनहित ताहू सों।।
झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना।।
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाइ महा अति हृदय कठोरा।।

1.6.39

चौपाई
रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए।।
लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा।।
तब कपीस रिच्छेस बिभीषन। सुमिरि हृदयँ दिनकर कुल भूषन।।
करि बिचार तिन्ह मंत्र दृढ़ावा। चारि अनी कपि कटकु बनावा।।
जथाजोग सेनापति कीन्हे। जूथप सकल बोलि तब लीन्हे।।
प्रभु प्रताप कहि सब समुझाए। सुनि कपि सिंघनाद करि धाए।।
हरषित राम चरन सिर नावहिं। गहि गिरि सिखर बीर सब धावहिं।।
गर्जहिं तर्जहिं भालु कपीसा। जय रघुबीर कोसलाधीसा।।
जानत परम दुर्ग अति लंका। प्रभु प्रताप कपि चले असंका।।

1.5.39

चौपाई
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला।।
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता।।
गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।।
जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।
ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा।।
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही।।
सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा।।
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन।।

दोहा/सोरठा

1.3.39

चौपाई
गुनातीत सचराचर स्वामी। राम उमा सब अंतरजामी।।
कामिन्ह कै दीनता देखाई। धीरन्ह कें मन बिरति दृढ़ाई।।
क्रोध मनोज लोभ मद माया। छूटहिं सकल राम कीं दाया।।
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला। जा पर होइ सो नट अनुकूला।।
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना।।
पुनि प्रभु गए सरोबर तीरा। पंपा नाम सुभग गंभीरा।।
संत हृदय जस निर्मल बारी। बाँधे घाट मनोहर चारी।।
जहँ तहँ पिअहिं बिबिध मृग नीरा। जनु उदार गृह जाचक भीरा।।

दोहा/सोरठा

1.2.39

चौपाई
आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब पूँछेहु आई।।
चलेउ सुमंत्र राय रूख जानी। लखी कुचालि कीन्हि कछु रानी।।
सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहि बोलि कहिहि का राऊ।।
उर धरि धीरजु गयउ दुआरें। पूछँहिं सकल देखि मनु मारें।।
समाधानु करि सो सबही का। गयउ जहाँ दिनकर कुल टीका।।
रामु सुमंत्रहि आवत देखा। आदरु कीन्ह पिता सम लेखा।।
निरखि बदनु कहि भूप रजाई। रघुकुलदीपहि चलेउ लेवाई।।
रामु कुभाँति सचिव सँग जाहीं। देखि लोग जहँ तहँ बिलखाहीं।।

दोहा/सोरठा

1.1.39

चौपाई
जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई। जातहिं नींद जुड़ाई होई।।
जड़ता जाड़ बिषम उर लागा। गएहुँ न मज्जन पाव अभागा।।
करि न जाइ सर मज्जन पाना। फिरि आवइ समेत अभिमाना।।
जौं बहोरि कोउ पूछन आवा। सर निंदा करि ताहि बुझावा।।
सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही।।
सोइ सादर सर मज्जनु करई। महा घोर त्रयताप न जरई।।
ते नर यह सर तजहिं न काऊ। जिन्ह के राम चरन भल भाऊ।।
जो नहाइ चह एहिं सर भाई। सो सतसंग करउ मन लाई।।
अस मानस मानस चख चाही। भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही।।

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