71

3.2.71

चौपाई
અસ જિયજાનિ સુનહુ સિખ ભાઈ। કરહુ માતુ પિતુ પદ સેવકાઈ।।
ભવન ભરતુ રિપુસૂદન નાહીં। રાઉ બૃદ્ધ મમ દુખુ મન માહીં।।
મૈં બન જાઉતુમ્હહિ લેઇ સાથા। હોઇ સબહિ બિધિ અવધ અનાથા।।
ગુરુ પિતુ માતુ પ્રજા પરિવારૂ। સબ કહુપરઇ દુસહ દુખ ભારૂ।।
રહહુ કરહુ સબ કર પરિતોષૂ। નતરુ તાત હોઇહિ બડ઼ દોષૂ।।
જાસુ રાજ પ્રિય પ્રજા દુખારી। સો નૃપુ અવસિ નરક અધિકારી।।
રહહુ તાત અસિ નીતિ બિચારી। સુનત લખનુ ભએ બ્યાકુલ ભારી।।
સિઅરેં બચન સૂખિ ગએ કૈંસેં। પરસત તુહિન તામરસુ જૈસેં।।

3.1.71

चौपाई
કહિ અસ બ્રહ્મભવન મુનિ ગયઊ। આગિલ ચરિત સુનહુ જસ ભયઊ।।
પતિહિ એકાંત પાઇ કહ મૈના। નાથ ન મૈં સમુઝે મુનિ બૈના।।
જૌં ઘરુ બરુ કુલુ હોઇ અનૂપા। કરિઅ બિબાહુ સુતા અનુરુપા।।
ન ત કન્યા બરુ રહઉ કુઆરી। કંત ઉમા મમ પ્રાનપિઆરી।।
જૌં ન મિલહિ બરુ ગિરિજહિ જોગૂ। ગિરિ જડ઼ સહજ કહિહિ સબુ લોગૂ।।
સોઇ બિચારિ પતિ કરેહુ બિબાહૂ। જેહિં ન બહોરિ હોઇ ઉર દાહૂ।।
અસ કહિ પરિ ચરન ધરિ સીસા। બોલે સહિત સનેહ ગિરીસા।।
બરુ પાવક પ્રગટૈ સસિ માહીં। નારદ બચનુ અન્યથા નાહીં।।

2.7.71

चौपाई
গুন কৃত সন্যপাত নহিং কেহী৷ কোউ ন মান মদ তজেউ নিবেহী৷৷
জোবন জ্বর কেহি নহিং বলকাবা৷ মমতা কেহি কর জস ন নসাবা৷৷
মচ্ছর কাহি কলংক ন লাবা৷ কাহি ন সোক সমীর ডোলাবা৷৷
চিংতা সািনি কো নহিং খাযা৷ কো জগ জাহি ন ব্যাপী মাযা৷৷
কীট মনোরথ দারু সরীরা৷ জেহি ন লাগ ঘুন কো অস ধীরা৷৷
সুত বিত লোক ঈষনা তীনী৷ কেহি কে মতি ইন্হ কৃত ন মলীনী৷৷
যহ সব মাযা কর পরিবারা৷ প্রবল অমিতি কো বরনৈ পারা৷৷
সিব চতুরানন জাহি ডেরাহীং৷ অপর জীব কেহি লেখে মাহীং৷৷

2.6.71

चौपाई
সভয দেব করুনানিধি জান্যো৷ শ্রবন প্রজংত সরাসনু তান্যো৷৷
বিসিখ নিকর নিসিচর মুখ ভরেঊ৷ তদপি মহাবল ভূমি ন পরেঊ৷৷
সরন্হি ভরা মুখ সন্মুখ ধাবা৷ কাল ত্রোন সজীব জনু আবা৷৷
তব প্রভু কোপি তীব্র সর লীন্হা৷ ধর তে ভিন্ন তাসু সির কীন্হা৷৷
সো সির পরেউ দসানন আগেং৷ বিকল ভযউ জিমি ফনি মনি ত্যাগেং৷৷
ধরনি ধসই ধর ধাব প্রচংডা৷ তব প্রভু কাটি কীন্হ দুই খংডা৷৷
পরে ভূমি জিমি নভ তেং ভূধর৷ হেঠ দাবি কপি ভালু নিসাচর৷৷
তাসু তেজ প্রভু বদন সমানা৷ সুর মুনি সবহিং অচংভব মানা৷৷
সুর দুংদুভীং বজাবহিং হরষহিং৷ অস্তুতি করহিং সুমন বহু বরষহিং৷৷

2.2.71

चौपाई
অস জিযজানি সুনহু সিখ ভাঈ৷ করহু মাতু পিতু পদ সেবকাঈ৷৷
ভবন ভরতু রিপুসূদন নাহীং৷ রাউ বৃদ্ধ মম দুখু মন মাহীং৷৷
মৈং বন জাউতুম্হহি লেই সাথা৷ হোই সবহি বিধি অবধ অনাথা৷৷
গুরু পিতু মাতু প্রজা পরিবারূ৷ সব কহুপরই দুসহ দুখ ভারূ৷৷
রহহু করহু সব কর পরিতোষূ৷ নতরু তাত হোইহি বড় দোষূ৷৷
জাসু রাজ প্রিয প্রজা দুখারী৷ সো নৃপু অবসি নরক অধিকারী৷৷
রহহু তাত অসি নীতি বিচারী৷ সুনত লখনু ভএ ব্যাকুল ভারী৷৷
সিঅরেং বচন সূখি গএ কৈংসেং৷ পরসত তুহিন তামরসু জৈসেং৷৷

2.1.71

चौपाई
কহি অস ব্রহ্মভবন মুনি গযঊ৷ আগিল চরিত সুনহু জস ভযঊ৷৷
পতিহি একাংত পাই কহ মৈনা৷ নাথ ন মৈং সমুঝে মুনি বৈনা৷৷
জৌং ঘরু বরু কুলু হোই অনূপা৷ করিঅ বিবাহু সুতা অনুরুপা৷৷
ন ত কন্যা বরু রহউ কুআরী৷ কংত উমা মম প্রানপিআরী৷৷
জৌং ন মিলহি বরু গিরিজহি জোগূ৷ গিরি জড় সহজ কহিহি সবু লোগূ৷৷
সোই বিচারি পতি করেহু বিবাহূ৷ জেহিং ন বহোরি হোই উর দাহূ৷৷
অস কহি পরি চরন ধরি সীসা৷ বোলে সহিত সনেহ গিরীসা৷৷
বরু পাবক প্রগটৈ সসি মাহীং৷ নারদ বচনু অন্যথা নাহীং৷৷

1.7.71

चौपाई
गुन कृत सन्यपात नहिं केही। कोउ न मान मद तजेउ निबेही।।
जोबन ज्वर केहि नहिं बलकावा। ममता केहि कर जस न नसावा।।
मच्छर काहि कलंक न लावा। काहि न सोक समीर डोलावा।।
चिंता साँपिनि को नहिं खाया। को जग जाहि न ब्यापी माया।।
कीट मनोरथ दारु सरीरा। जेहि न लाग घुन को अस धीरा।।
सुत बित लोक ईषना तीनी। केहि के मति इन्ह कृत न मलीनी।।
यह सब माया कर परिवारा। प्रबल अमिति को बरनै पारा।।
सिव चतुरानन जाहि डेराहीं। अपर जीव केहि लेखे माहीं।।

1.6.71

चौपाई
सभय देव करुनानिधि जान्यो। श्रवन प्रजंत सरासनु तान्यो।।
बिसिख निकर निसिचर मुख भरेऊ। तदपि महाबल भूमि न परेऊ।।
सरन्हि भरा मुख सन्मुख धावा। काल त्रोन सजीव जनु आवा।।
तब प्रभु कोपि तीब्र सर लीन्हा। धर ते भिन्न तासु सिर कीन्हा।।
सो सिर परेउ दसानन आगें। बिकल भयउ जिमि फनि मनि त्यागें।।
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब प्रभु काटि कीन्ह दुइ खंडा।।
परे भूमि जिमि नभ तें भूधर। हेठ दाबि कपि भालु निसाचर।।
तासु तेज प्रभु बदन समाना। सुर मुनि सबहिं अचंभव माना।।
सुर दुंदुभीं बजावहिं हरषहिं। अस्तुति करहिं सुमन बहु बरषहिं।।

1.2.71

चौपाई
अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई। करहु मातु पितु पद सेवकाई।।
भवन भरतु रिपुसूदन नाहीं। राउ बृद्ध मम दुखु मन माहीं।।
मैं बन जाउँ तुम्हहि लेइ साथा। होइ सबहि बिधि अवध अनाथा।।
गुरु पितु मातु प्रजा परिवारू। सब कहुँ परइ दुसह दुख भारू।।
रहहु करहु सब कर परितोषू। नतरु तात होइहि बड़ दोषू।।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृपु अवसि नरक अधिकारी।।
रहहु तात असि नीति बिचारी। सुनत लखनु भए ब्याकुल भारी।।
सिअरें बचन सूखि गए कैंसें। परसत तुहिन तामरसु जैसें।।

1.1.71

चौपाई
कहि अस ब्रह्मभवन मुनि गयऊ। आगिल चरित सुनहु जस भयऊ।।
पतिहि एकांत पाइ कह मैना। नाथ न मैं समुझे मुनि बैना।।
जौं घरु बरु कुलु होइ अनूपा। करिअ बिबाहु सुता अनुरुपा।।
न त कन्या बरु रहउ कुआरी। कंत उमा मम प्रानपिआरी।।
जौं न मिलहि बरु गिरिजहि जोगू। गिरि जड़ सहज कहिहि सबु लोगू।।
सोइ बिचारि पति करेहु बिबाहू। जेहिं न बहोरि होइ उर दाहू।।
अस कहि परि चरन धरि सीसा। बोले सहित सनेह गिरीसा।।
बरु पावक प्रगटै ससि माहीं। नारद बचनु अन्यथा नाहीं।।

दोहा/सोरठा

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