84

3.2.84

चौपाई
રામ બિયોગ બિકલ સબ ઠાઢ઼ે। જહતહમનહુચિત્ર લિખિ કાઢ઼ે।।
નગરુ સફલ બનુ ગહબર ભારી। ખગ મૃગ બિપુલ સકલ નર નારી।।
બિધિ કૈકેઈ કિરાતિનિ કીન્હી। જેંહિ દવ દુસહ દસહુદિસિ દીન્હી।।
સહિ ન સકે રઘુબર બિરહાગી। ચલે લોગ સબ બ્યાકુલ ભાગી।।
સબહિં બિચાર કીન્હ મન માહીં। રામ લખન સિય બિનુ સુખુ નાહીં।।
જહારામુ તહસબુઇ સમાજૂ। બિનુ રઘુબીર અવધ નહિં કાજૂ।।
ચલે સાથ અસ મંત્રુ દૃઢ઼ાઈ। સુર દુર્લભ સુખ સદન બિહાઈ।।
રામ ચરન પંકજ પ્રિય જિન્હહી। બિષય ભોગ બસ કરહિં કિ તિન્હહી।।

3.1.84

चौपाई
તદપિ કરબ મૈં કાજુ તુમ્હારા। શ્રુતિ કહ પરમ ધરમ ઉપકારા।।
પર હિત લાગિ તજઇ જો દેહી। સંતત સંત પ્રસંસહિં તેહી।।
અસ કહિ ચલેઉ સબહિ સિરુ નાઈ। સુમન ધનુષ કર સહિત સહાઈ।।
ચલત માર અસ હૃદયબિચારા। સિવ બિરોધ ધ્રુવ મરનુ હમારા।।
તબ આપન પ્રભાઉ બિસ્તારા। નિજ બસ કીન્હ સકલ સંસારા।।
કોપેઉ જબહિ બારિચરકેતૂ। છન મહુમિટે સકલ શ્રુતિ સેતૂ।।
બ્રહ્મચર્જ બ્રત સંજમ નાના। ધીરજ ધરમ ગ્યાન બિગ્યાના।।
સદાચાર જપ જોગ બિરાગા। સભય બિબેક કટકુ સબ ભાગા।।

2.7.84

चौपाई
গ্যান বিবেক বিরতি বিগ্যানা৷ মুনি দুর্লভ গুন জে জগ নানা৷৷
আজু দেউসব সংসয নাহীং৷ মাগু জো তোহি ভাব মন মাহীং৷৷
সুনি প্রভু বচন অধিক অনুরাগেউ মন অনুমান করন তব লাগেঊ৷
প্রভু কহ দেন সকল সুখ সহী৷ ভগতি আপনী দেন ন কহী৷৷
ভগতি হীন গুন সব সুখ ঐসে৷ লবন বিনা বহু বিংজন জৈসে৷৷
ভজন হীন সুখ কবনে কাজা৷ অস বিচারি বোলেউখগরাজা৷৷
জৌং প্রভু হোই প্রসন্ন বর দেহূ৷ মো পর করহু কৃপা অরু নেহূ৷৷
মন ভাবত বর মাগউস্বামী৷ তুম্হ উদার উর অংতরজামী৷৷

2.6.84

चौपाई
জানু টেকি কপি ভূমি ন গিরা৷ উঠা সারি বহুত রিস ভরা৷৷
মুঠিকা এক তাহি কপি মারা৷ পরেউ সৈল জনু বজ্র প্রহারা৷৷
মুরুছা গৈ বহোরি সো জাগা৷ কপি বল বিপুল সরাহন লাগা৷৷
ধিগ ধিগ মম পৌরুষ ধিগ মোহী৷ জৌং তৈং জিঅত রহেসি সুরদ্রোহী৷৷
অস কহি লছিমন কহুকপি ল্যাযো৷ দেখি দসানন বিসময পাযো৷৷
কহ রঘুবীর সমুঝু জিযভ্রাতা৷ তুম্হ কৃতাংত ভচ্ছক সুর ত্রাতা৷৷
সুনত বচন উঠি বৈঠ কৃপালা৷ গঈ গগন সো সকতি করালা৷৷
পুনি কোদংড বান গহি ধাএ৷ রিপু সন্মুখ অতি আতুর আএ৷৷

2.2.84

चौपाई
রাম বিযোগ বিকল সব ঠাঢ়ে৷ জহতহমনহুচিত্র লিখি কাঢ়ে৷৷
নগরু সফল বনু গহবর ভারী৷ খগ মৃগ বিপুল সকল নর নারী৷৷
বিধি কৈকেঈ কিরাতিনি কীন্হী৷ জেংহি দব দুসহ দসহুদিসি দীন্হী৷৷
সহি ন সকে রঘুবর বিরহাগী৷ চলে লোগ সব ব্যাকুল ভাগী৷৷
সবহিং বিচার কীন্হ মন মাহীং৷ রাম লখন সিয বিনু সুখু নাহীং৷৷
জহারামু তহসবুই সমাজূ৷ বিনু রঘুবীর অবধ নহিং কাজূ৷৷
চলে সাথ অস মংত্রু দৃঢ়াঈ৷ সুর দুর্লভ সুখ সদন বিহাঈ৷৷
রাম চরন পংকজ প্রিয জিন্হহী৷ বিষয ভোগ বস করহিং কি তিন্হহী৷৷

2.1.84

चौपाई
তদপি করব মৈং কাজু তুম্হারা৷ শ্রুতি কহ পরম ধরম উপকারা৷৷
পর হিত লাগি তজই জো দেহী৷ সংতত সংত প্রসংসহিং তেহী৷৷
অস কহি চলেউ সবহি সিরু নাঈ৷ সুমন ধনুষ কর সহিত সহাঈ৷৷
চলত মার অস হৃদযবিচারা৷ সিব বিরোধ ধ্রুব মরনু হমারা৷৷
তব আপন প্রভাউ বিস্তারা৷ নিজ বস কীন্হ সকল সংসারা৷৷
কোপেউ জবহি বারিচরকেতূ৷ ছন মহুমিটে সকল শ্রুতি সেতূ৷৷
ব্রহ্মচর্জ ব্রত সংজম নানা৷ ধীরজ ধরম গ্যান বিগ্যানা৷৷
সদাচার জপ জোগ বিরাগা৷ সভয বিবেক কটকু সব ভাগা৷৷

1.7.84

चौपाई
ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना। मुनि दुर्लभ गुन जे जग नाना।।
आजु देउँ सब संसय नाहीं। मागु जो तोहि भाव मन माहीं।।
सुनि प्रभु बचन अधिक अनुरागेउँ। मन अनुमान करन तब लागेऊँ।।
प्रभु कह देन सकल सुख सही। भगति आपनी देन न कही।।
भगति हीन गुन सब सुख ऐसे। लवन बिना बहु बिंजन जैसे।।
भजन हीन सुख कवने काजा। अस बिचारि बोलेउँ खगराजा।।
जौं प्रभु होइ प्रसन्न बर देहू। मो पर करहु कृपा अरु नेहू।।
मन भावत बर मागउँ स्वामी। तुम्ह उदार उर अंतरजामी।।

1.6.84

चौपाई
जानु टेकि कपि भूमि न गिरा। उठा सँभारि बहुत रिस भरा।।
मुठिका एक ताहि कपि मारा। परेउ सैल जनु बज्र प्रहारा।।
मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा।।
धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही।।
अस कहि लछिमन कहुँ कपि ल्यायो। देखि दसानन बिसमय पायो।।
कह रघुबीर समुझु जियँ भ्राता। तुम्ह कृतांत भच्छक सुर त्राता।।
सुनत बचन उठि बैठ कृपाला। गई गगन सो सकति कराला।।
पुनि कोदंड बान गहि धाए। रिपु सन्मुख अति आतुर आए।।

1.2.84

चौपाई
राम बियोग बिकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े।।
नगरु सफल बनु गहबर भारी। खग मृग बिपुल सकल नर नारी।।
बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही। जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही।।
सहि न सके रघुबर बिरहागी। चले लोग सब ब्याकुल भागी।।
सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं। राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं।।
जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू। बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू।।
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई। सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई।।
राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही। बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही।।

1.1.84

चौपाई
तदपि करब मैं काजु तुम्हारा। श्रुति कह परम धरम उपकारा।।
पर हित लागि तजइ जो देही। संतत संत प्रसंसहिं तेही।।
अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई। सुमन धनुष कर सहित सहाई।।
चलत मार अस हृदयँ बिचारा। सिव बिरोध ध्रुव मरनु हमारा।।
तब आपन प्रभाउ बिस्तारा। निज बस कीन्ह सकल संसारा।।
कोपेउ जबहि बारिचरकेतू। छन महुँ मिटे सकल श्रुति सेतू।।
ब्रह्मचर्ज ब्रत संजम नाना। धीरज धरम ग्यान बिग्याना।।
सदाचार जप जोग बिरागा। सभय बिबेक कटकु सब भागा।।

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