85

3.2.85

चौपाई
રઘુપતિ પ્રજા પ્રેમબસ દેખી। સદય હૃદયદુખુ ભયઉ બિસેષી।।
કરુનામય રઘુનાથ ગોસા। બેગિ પાઇઅહિં પીર પરાઈ।।
કહિ સપ્રેમ મૃદુ બચન સુહાએ। બહુબિધિ રામ લોગ સમુઝાએ।।
કિએ ધરમ ઉપદેસ ઘનેરે। લોગ પ્રેમ બસ ફિરહિં ન ફેરે।।
સીલુ સનેહુ છાડ઼િ નહિં જાઈ। અસમંજસ બસ ભે રઘુરાઈ।।
લોગ સોગ શ્રમ બસ ગએ સોઈ। કછુક દેવમાયામતિ મોઈ।।
જબહિં જામ જુગ જામિનિ બીતી। રામ સચિવ સન કહેઉ સપ્રીતી।।
ખોજ મારિ રથુ હાહુ તાતા। આન ઉપાયબનિહિ નહિં બાતા।।

3.1.85

चौपाई
સબ કે હૃદયમદન અભિલાષા। લતા નિહારિ નવહિં તરુ સાખા।।
નદીં ઉમગિ અંબુધિ કહુધાઈ। સંગમ કરહિં તલાવ તલાઈ।।
જહઅસિ દસા જડ઼ન્હ કૈ બરની। કો કહિ સકઇ સચેતન કરની।।
પસુ પચ્છી નભ જલ થલચારી। ભએ કામબસ સમય બિસારી।।
મદન અંધ બ્યાકુલ સબ લોકા। નિસિ દિનુ નહિં અવલોકહિં કોકા।।
દેવ દનુજ નર કિંનર બ્યાલા। પ્રેત પિસાચ ભૂત બેતાલા।।
ઇન્હ કૈ દસા ન કહેઉબખાની। સદા કામ કે ચેરે જાની।।
સિદ્ધ બિરક્ત મહામુનિ જોગી। તેપિ કામબસ ભએ બિયોગી।।

2.7.85

चौपाई
এবমস্তু কহি রঘুকুলনাযক৷ বোলে বচন পরম সুখদাযক৷৷
সুনু বাযস তৈং সহজ সযানা৷ কাহে ন মাগসি অস বরদানা৷৷
সব সুখ খানি ভগতি তৈং মাগী৷ নহিং জগ কোউ তোহি সম বড়ভাগী৷৷
জো মুনি কোটি জতন নহিং লহহীং৷ জে জপ জোগ অনল তন দহহীং৷৷
রীঝেউদেখি তোরি চতুরাঈ৷ মাগেহু ভগতি মোহি অতি ভাঈ৷৷
সুনু বিহংগ প্রসাদ অব মোরেং৷ সব সুভ গুন বসিহহিং উর তোরেং৷৷
ভগতি গ্যান বিগ্যান বিরাগা৷ জোগ চরিত্র রহস্য বিভাগা৷৷
জানব তৈং সবহী কর ভেদা৷ মম প্রসাদ নহিং সাধন খেদা৷৷

2.6.85

चौपाई
ইহাবিভীষন সব সুধি পাঈ৷ সপদি জাই রঘুপতিহি সুনাঈ৷৷
নাথ করই রাবন এক জাগা৷ সিদ্ধ ভএনহিং মরিহি অভাগা৷৷
পঠবহু নাথ বেগি ভট বংদর৷ করহিং বিধংস আব দসকংধর৷৷
প্রাত হোত প্রভু সুভট পঠাএ৷ হনুমদাদি অংগদ সব ধাএ৷৷
কৌতুক কূদি চঢ়ে কপি লংকা৷ পৈঠে রাবন ভবন অসংকা৷৷
জগ্য করত জবহীং সো দেখা৷ সকল কপিন্হ ভা ক্রোধ বিসেষা৷৷
রন তে নিলজ ভাজি গৃহ আবা৷ ইহাআই বক ধ্যান লগাবা৷৷
অস কহি অংগদ মারা লাতা৷ চিতব ন সঠ স্বারথ মন রাতা৷৷

2.2.85

चौपाई
রঘুপতি প্রজা প্রেমবস দেখী৷ সদয হৃদযদুখু ভযউ বিসেষী৷৷
করুনাময রঘুনাথ গোসা৷ বেগি পাইঅহিং পীর পরাঈ৷৷
কহি সপ্রেম মৃদু বচন সুহাএ৷ বহুবিধি রাম লোগ সমুঝাএ৷৷
কিএ ধরম উপদেস ঘনেরে৷ লোগ প্রেম বস ফিরহিং ন ফেরে৷৷
সীলু সনেহু ছাড়ি নহিং জাঈ৷ অসমংজস বস ভে রঘুরাঈ৷৷
লোগ সোগ শ্রম বস গএ সোঈ৷ কছুক দেবমাযামতি মোঈ৷৷
জবহিং জাম জুগ জামিনি বীতী৷ রাম সচিব সন কহেউ সপ্রীতী৷৷
খোজ মারি রথু হাহু তাতা৷ আন উপাযবনিহি নহিং বাতা৷৷

2.1.85

चौपाई
সব কে হৃদযমদন অভিলাষা৷ লতা নিহারি নবহিং তরু সাখা৷৷
নদীং উমগি অংবুধি কহুধাঈ৷ সংগম করহিং তলাব তলাঈ৷৷
জহঅসি দসা জড়ন্হ কৈ বরনী৷ কো কহি সকই সচেতন করনী৷৷
পসু পচ্ছী নভ জল থলচারী৷ ভএ কামবস সময বিসারী৷৷
মদন অংধ ব্যাকুল সব লোকা৷ নিসি দিনু নহিং অবলোকহিং কোকা৷৷
দেব দনুজ নর কিংনর ব্যালা৷ প্রেত পিসাচ ভূত বেতালা৷৷
ইন্হ কৈ দসা ন কহেউবখানী৷ সদা কাম কে চেরে জানী৷৷
সিদ্ধ বিরক্ত মহামুনি জোগী৷ তেপি কামবস ভএ বিযোগী৷৷

1.7.85

चौपाई
एवमस्तु कहि रघुकुलनायक। बोले बचन परम सुखदायक।।
सुनु बायस तैं सहज सयाना। काहे न मागसि अस बरदाना।।
सब सुख खानि भगति तैं मागी। नहिं जग कोउ तोहि सम बड़भागी।।
जो मुनि कोटि जतन नहिं लहहीं। जे जप जोग अनल तन दहहीं।।
रीझेउँ देखि तोरि चतुराई। मागेहु भगति मोहि अति भाई।।
सुनु बिहंग प्रसाद अब मोरें। सब सुभ गुन बसिहहिं उर तोरें।।
भगति ग्यान बिग्यान बिरागा। जोग चरित्र रहस्य बिभागा।।
जानब तैं सबही कर भेदा। मम प्रसाद नहिं साधन खेदा।।

1.6.85

चौपाई
इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई। सपदि जाइ रघुपतिहि सुनाई।।
नाथ करइ रावन एक जागा। सिद्ध भएँ नहिं मरिहि अभागा।।
पठवहु नाथ बेगि भट बंदर। करहिं बिधंस आव दसकंधर।।
प्रात होत प्रभु सुभट पठाए। हनुमदादि अंगद सब धाए।।
कौतुक कूदि चढ़े कपि लंका। पैठे रावन भवन असंका।।
जग्य करत जबहीं सो देखा। सकल कपिन्ह भा क्रोध बिसेषा।।
रन ते निलज भाजि गृह आवा। इहाँ आइ बक ध्यान लगावा।।
अस कहि अंगद मारा लाता। चितव न सठ स्वारथ मन राता।।

1.2.85

चौपाई
रघुपति प्रजा प्रेमबस देखी। सदय हृदयँ दुखु भयउ बिसेषी।।
करुनामय रघुनाथ गोसाँई। बेगि पाइअहिं पीर पराई।।
कहि सप्रेम मृदु बचन सुहाए। बहुबिधि राम लोग समुझाए।।
किए धरम उपदेस घनेरे। लोग प्रेम बस फिरहिं न फेरे।।
सीलु सनेहु छाड़ि नहिं जाई। असमंजस बस भे रघुराई।।
लोग सोग श्रम बस गए सोई। कछुक देवमायाँ मति मोई।।
जबहिं जाम जुग जामिनि बीती। राम सचिव सन कहेउ सप्रीती।।
खोज मारि रथु हाँकहु ताता। आन उपायँ बनिहि नहिं बाता।।

दोहा/सोरठा

1.1.85

चौपाई
सब के हृदयँ मदन अभिलाषा। लता निहारि नवहिं तरु साखा।।
नदीं उमगि अंबुधि कहुँ धाई। संगम करहिं तलाव तलाई।।
जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी। को कहि सकइ सचेतन करनी।।
पसु पच्छी नभ जल थलचारी। भए कामबस समय बिसारी।।
मदन अंध ब्याकुल सब लोका। निसि दिनु नहिं अवलोकहिं कोका।।
देव दनुज नर किंनर ब्याला। प्रेत पिसाच भूत बेताला।।
इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी। सदा काम के चेरे जानी।।
सिद्ध बिरक्त महामुनि जोगी। तेपि कामबस भए बियोगी।।

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