98

3.2.98

चौपाई
પિતુ બૈભવ બિલાસ મૈં ડીઠા। નૃપ મનિ મુકુટ મિલિત પદ પીઠા।।
સુખનિધાન અસ પિતુ ગૃહ મોરેં। પિય બિહીન મન ભાવ ન ભોરેં।।
સસુર ચક્કવઇ કોસલરાઊ। ભુવન ચારિદસ પ્રગટ પ્રભાઊ।।
આગેં હોઇ જેહિ સુરપતિ લેઈ। અરધ સિંઘાસન આસનુ દેઈ।।
સસુરુ એતાદૃસ અવધ નિવાસૂ। પ્રિય પરિવારુ માતુ સમ સાસૂ।।
બિનુ રઘુપતિ પદ પદુમ પરાગા। મોહિ કેઉ સપનેહુસુખદ ન લાગા।।
અગમ પંથ બનભૂમિ પહારા। કરિ કેહરિ સર સરિત અપારા।।
કોલ કિરાત કુરંગ બિહંગા। મોહિ સબ સુખદ પ્રાનપતિ સંગા।।

3.1.98

चौपाई
તબ નારદ સબહિ સમુઝાવા। પૂરુબ કથાપ્રસંગુ સુનાવા।।
મયના સત્ય સુનહુ મમ બાની। જગદંબા તવ સુતા ભવાની।।
અજા અનાદિ સક્તિ અબિનાસિનિ। સદા સંભુ અરધંગ નિવાસિનિ।।
જગ સંભવ પાલન લય કારિનિ। નિજ ઇચ્છા લીલા બપુ ધારિનિ।।
જનમીં પ્રથમ દચ્છ ગૃહ જાઈ। નામુ સતી સુંદર તનુ પાઈ।।
તહુસતી સંકરહિ બિબાહીં। કથા પ્રસિદ્ધ સકલ જગ માહીં।।
એક બાર આવત સિવ સંગા। દેખેઉ રઘુકુલ કમલ પતંગા।।
ભયઉ મોહુ સિવ કહા ન કીન્હા। ભ્રમ બસ બેષુ સીય કર લીન્હા।।

2.7.98

चौपाई
বরন ধর্ম নহিং আশ্রম চারী৷ শ্রুতি বিরোধ রত সব নর নারী৷৷
দ্বিজ শ্রুতি বেচক ভূপ প্রজাসন৷ কোউ নহিং মান নিগম অনুসাসন৷৷
মারগ সোই জা কহুজোই ভাবা৷ পংডিত সোই জো গাল বজাবা৷৷
মিথ্যারংভ দংভ রত জোঈ৷ তা কহুসংত কহই সব কোঈ৷৷
সোই সযান জো পরধন হারী৷ জো কর দংভ সো বড় আচারী৷৷
জৌ কহ ঝূ মসখরী জানা৷ কলিজুগ সোই গুনবংত বখানা৷৷
নিরাচার জো শ্রুতি পথ ত্যাগী৷ কলিজুগ সোই গ্যানী সো বিরাগী৷৷
জাকেং নখ অরু জটা বিসালা৷ সোই তাপস প্রসিদ্ধ কলিকালা৷৷

2.6.98

चौपाई
সির ভুজ বাঢ়ি দেখি রিপু কেরী৷ ভালু কপিন্হ রিস ভঈ ঘনেরী৷৷
মরত ন মূঢ় কটেউ ভুজ সীসা৷ ধাএ কোপি ভালু ভট কীসা৷৷
বালিতনয মারুতি নল নীলা৷ বানররাজ দুবিদ বলসীলা৷৷
বিটপ মহীধর করহিং প্রহারা৷ সোই গিরি তরু গহি কপিন্হ সো মারা৷৷
এক নখন্হি রিপু বপুষ বিদারী৷ ভঅগি চলহিং এক লাতন্হ মারী৷৷
তব নল নীল সিরন্হি চঢ়ি গযঊ৷ নখন্হি লিলার বিদারত ভযঊ৷৷
রুধির দেখি বিষাদ উর ভারী৷ তিন্হহি ধরন কহুভুজা পসারী৷৷
গহে ন জাহিং করন্হি পর ফিরহীং৷ জনু জুগ মধুপ কমল বন চরহীং৷৷
কোপি কূদি দ্বৌ ধরেসি বহোরী৷ মহি পটকত ভজে ভুজা মরোরী৷৷

2.2.98

चौपाई
পিতু বৈভব বিলাস মৈং ডীঠা৷ নৃপ মনি মুকুট মিলিত পদ পীঠা৷৷
সুখনিধান অস পিতু গৃহ মোরেং৷ পিয বিহীন মন ভাব ন ভোরেং৷৷
সসুর চক্কবই কোসলরাঊ৷ ভুবন চারিদস প্রগট প্রভাঊ৷৷
আগেং হোই জেহি সুরপতি লেঈ৷ অরধ সিংঘাসন আসনু দেঈ৷৷
সসুরু এতাদৃস অবধ নিবাসূ৷ প্রিয পরিবারু মাতু সম সাসূ৷৷
বিনু রঘুপতি পদ পদুম পরাগা৷ মোহি কেউ সপনেহুসুখদ ন লাগা৷৷
অগম পংথ বনভূমি পহারা৷ করি কেহরি সর সরিত অপারা৷৷
কোল কিরাত কুরংগ বিহংগা৷ মোহি সব সুখদ প্রানপতি সংগা৷৷

2.1.98

चौपाई
তব নারদ সবহি সমুঝাবা৷ পূরুব কথাপ্রসংগু সুনাবা৷৷
মযনা সত্য সুনহু মম বানী৷ জগদংবা তব সুতা ভবানী৷৷
অজা অনাদি সক্তি অবিনাসিনি৷ সদা সংভু অরধংগ নিবাসিনি৷৷
জগ সংভব পালন লয কারিনি৷ নিজ ইচ্ছা লীলা বপু ধারিনি৷৷
জনমীং প্রথম দচ্ছ গৃহ জাঈ৷ নামু সতী সুংদর তনু পাঈ৷৷
তহুসতী সংকরহি বিবাহীং৷ কথা প্রসিদ্ধ সকল জগ মাহীং৷৷
এক বার আবত সিব সংগা৷ দেখেউ রঘুকুল কমল পতংগা৷৷
ভযউ মোহু সিব কহা ন কীন্হা৷ ভ্রম বস বেষু সীয কর লীন্হা৷৷

1.7.98

चौपाई
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी।।
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन।।
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा।।
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई।।
सोइ सयान जो परधन हारी। जो कर दंभ सो बड़ आचारी।।
जौ कह झूँठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना।।
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी।।
जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला।।

1.6.98

चौपाई
सिर भुज बाढ़ि देखि रिपु केरी। भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी।।
मरत न मूढ़ कटेउ भुज सीसा। धाए कोपि भालु भट कीसा।।
बालितनय मारुति नल नीला। बानरराज दुबिद बलसीला।।
बिटप महीधर करहिं प्रहारा। सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सो मारा।।
एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी। भअगि चलहिं एक लातन्ह मारी।।
तब नल नील सिरन्हि चढ़ि गयऊ। नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ।।
रुधिर देखि बिषाद उर भारी। तिन्हहि धरन कहुँ भुजा पसारी।।
गहे न जाहिं करन्हि पर फिरहीं। जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं।।
कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी। महि पटकत भजे भुजा मरोरी।।

1.2.98

चौपाई
पितु बैभव बिलास मैं डीठा। नृप मनि मुकुट मिलित पद पीठा।।
सुखनिधान अस पितु गृह मोरें। पिय बिहीन मन भाव न भोरें।।
ससुर चक्कवइ कोसलराऊ। भुवन चारिदस प्रगट प्रभाऊ।।
आगें होइ जेहि सुरपति लेई। अरध सिंघासन आसनु देई।।
ससुरु एतादृस अवध निवासू। प्रिय परिवारु मातु सम सासू।।
बिनु रघुपति पद पदुम परागा। मोहि केउ सपनेहुँ सुखद न लागा।।
अगम पंथ बनभूमि पहारा। करि केहरि सर सरित अपारा।।
कोल किरात कुरंग बिहंगा। मोहि सब सुखद प्रानपति संगा।।

दोहा/सोरठा

1.1.98

चौपाई
तब नारद सबहि समुझावा। पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा।।
मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी।।
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि।।
जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि।।
जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु पाई।।
तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं।।
एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा।।
भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा।।

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