चौपाई
बहुरि कीन्ह कोसलपति पूजा। जानि ईस सम भाउ न दूजा।।
कीन्ह जोरि कर बिनय बड़ाई। कहि निज भाग्य बिभव बहुताई।।
पूजे भूपति सकल बराती। समधि सम सादर सब भाँती।।
आसन उचित दिए सब काहू। कहौं काह मूख एक उछाहू।।
सकल बरात जनक सनमानी। दान मान बिनती बर बानी।।
बिधि हरि हरु दिसिपति दिनराऊ। जे जानहिं रघुबीर प्रभाऊ।।
कपट बिप्र बर बेष बनाएँ। कौतुक देखहिं अति सचु पाएँ।।
पूजे जनक देव सम जानें। दिए सुआसन बिनु पहिचानें।।