चौपाई
मिलेहि माझ बिधि बात बेगारी। जहँ तहँ देहिं कैकेइहि गारी।।
एहि पापिनिहि बूझि का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ।।
निज कर नयन काढ़ि चह दीखा। डारि सुधा बिषु चाहत चीखा।।
कुटिल कठोर कुबुद्धि अभागी। भइ रघुबंस बेनु बन आगी।।
पालव बैठि पेड़ु एहिं काटा। सुख महुँ सोक ठाटु धरि ठाटा।।
सदा रामु एहि प्रान समाना। कारन कवन कुटिलपनु ठाना।।
सत्य कहहिं कबि नारि सुभाऊ। सब बिधि अगहु अगाध दुराऊ।।
निज प्रतिबिंबु बरुकु गहि जाई। जानि न जाइ नारि गति भाई।।
दोहा/सोरठा