चौपाई
मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना।।
जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा।।
जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा।।
सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता।।
फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बंधु सिय सुंदर वेषा।।
जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना।।
देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका।।
बंदत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा।।
दोहा/सोरठा