37

2.5.37

चौपाई
শ্রবন সুনী সঠ তা করি বানী৷ বিহসা জগত বিদিত অভিমানী৷৷
সভয সুভাউ নারি কর সাচা৷ মংগল মহুভয মন অতি কাচা৷৷
জৌং আবই মর্কট কটকাঈ৷ জিঅহিং বিচারে নিসিচর খাঈ৷৷
কংপহিং লোকপ জাকী ত্রাসা৷ তাসু নারি সভীত বড়ি হাসা৷৷
অস কহি বিহসি তাহি উর লাঈ৷ চলেউ সভামমতা অধিকাঈ৷৷
মংদোদরী হৃদযকর চিংতা৷ ভযউ কংত পর বিধি বিপরীতা৷৷
বৈঠেউ সভাখবরি অসি পাঈ৷ সিংধু পার সেনা সব আঈ৷৷
বূঝেসি সচিব উচিত মত কহহূ৷ তে সব হে মষ্ট করি রহহূ৷৷
জিতেহু সুরাসুর তব শ্রম নাহীং৷ নর বানর কেহি লেখে মাহী৷৷

2.3.37

चौपाई
চলে রাম ত্যাগা বন সোঊ৷ অতুলিত বল নর কেহরি দোঊ৷৷
বিরহী ইব প্রভু করত বিষাদা৷ কহত কথা অনেক সংবাদা৷৷
লছিমন দেখু বিপিন কই সোভা৷ দেখত কেহি কর মন নহিং ছোভা৷৷
নারি সহিত সব খগ মৃগ বৃংদা৷ মানহুমোরি করত হহিং নিংদা৷৷
হমহি দেখি মৃগ নিকর পরাহীং৷ মৃগীং কহহিং তুম্হ কহভয নাহীং৷৷
তুম্হ আনংদ করহু মৃগ জাএ৷ কংচন মৃগ খোজন এ আএ৷৷
সংগ লাই করিনীং করি লেহীং৷ মানহুমোহি সিখাবনু দেহীং৷৷
সাস্ত্র সুচিংতিত পুনি পুনি দেখিঅ৷ ভূপ সুসেবিত বস নহিং লেখিঅ৷৷
রাখিঅ নারি জদপি উর মাহীং৷ জুবতী সাস্ত্র নৃপতি বস নাহীং৷৷

2.2.37

चौपाई
রাম রাম রট বিকল ভুআলূ৷ জনু বিনু পংখ বিহংগ বেহালূ৷৷
হৃদযমনাব ভোরু জনি হোঈ৷ রামহি জাই কহৈ জনি কোঈ৷৷
উদউ করহু জনি রবি রঘুকুল গুর৷ অবধ বিলোকি সূল হোইহি উর৷৷
ভূপ প্রীতি কৈকই কঠিনাঈ৷ উভয অবধি বিধি রচী বনাঈ৷৷
বিলপত নৃপহি ভযউ ভিনুসারা৷ বীনা বেনু সংখ ধুনি দ্বারা৷৷
পঢ়হিং ভাট গুন গাবহিং গাযক৷ সুনত নৃপহি জনু লাগহিং সাযক৷৷
মংগল সকল সোহাহিং ন কৈসেং৷ সহগামিনিহি বিভূষন জৈসেং৷৷
তেহিং নিসি নীদ পরী নহি কাহূ৷ রাম দরস লালসা উছাহূ৷৷

2.1.37

चौपाई
সপ্ত প্রবন্ধ সুভগ সোপানা৷ গ্যান নযন নিরখত মন মানা৷৷
রঘুপতি মহিমা অগুন অবাধা৷ বরনব সোই বর বারি অগাধা৷৷
রাম সীয জস সলিল সুধাসম৷ উপমা বীচি বিলাস মনোরম৷৷
পুরইনি সঘন চারু চৌপাঈ৷ জুগুতি মংজু মনি সীপ সুহাঈ৷৷
ছংদ সোরঠা সুংদর দোহা৷ সোই বহুরংগ কমল কুল সোহা৷৷
অরথ অনূপ সুমাব সুভাসা৷ সোই পরাগ মকরংদ সুবাসা৷৷
সুকৃত পুংজ মংজুল অলি মালা৷ গ্যান বিরাগ বিচার মরালা৷৷
ধুনি অবরেব কবিত গুন জাতী৷ মীন মনোহর তে বহুভাী৷৷
অরথ ধরম কামাদিক চারী৷ কহব গ্যান বিগ্যান বিচারী৷৷
নব রস জপ তপ জোগ বিরাগা৷ তে সব জলচর চারু তড়াগা৷৷

1.7.37

चौपाई
करउँ कृपानिधि एक ढिठाई। मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई।।
संतन्ह कै महिमा रघुराई। बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई।।
श्रीमुख तुम्ह पुनि कीन्हि बड़ाई। तिन्ह पर प्रभुहि प्रीति अधिकाई।।
सुना चहउँ प्रभु तिन्ह कर लच्छन। कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन।।
संत असंत भेद बिलगाई। प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई।।
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता।।
संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी।।
काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई।।

1.6.37

चौपाई
जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला। उतरे प्रभु दल सहित सुबेला।।
कारुनीक दिनकर कुल केतू। दूत पठायउ तव हित हेतू।।
सभा माझ जेहिं तव बल मथा। करि बरूथ महुँ मृगपति जथा।।
अंगद हनुमत अनुचर जाके। रन बाँकुरे बीर अति बाँके।।
तेहि कहँ पिय पुनि पुनि नर कहहू। मुधा मान ममता मद बहहू।।
अहह कंत कृत राम बिरोधा। काल बिबस मन उपज न बोधा।।
काल दंड गहि काहु न मारा। हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा।।
निकट काल जेहि आवत साईं। तेहि भ्रम होइ तुम्हारिहि नाईं।।

दोहा/सोरठा

1.5.37

चौपाई
श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।।
सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।।
जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।।
कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।।
अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।।
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।।
बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।।
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।।
जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माही।।

1.3.37

चौपाई
चले राम त्यागा बन सोऊ। अतुलित बल नर केहरि दोऊ।।
बिरही इव प्रभु करत बिषादा। कहत कथा अनेक संबादा।।
लछिमन देखु बिपिन कइ सोभा। देखत केहि कर मन नहिं छोभा।।
नारि सहित सब खग मृग बृंदा। मानहुँ मोरि करत हहिं निंदा।।
हमहि देखि मृग निकर पराहीं। मृगीं कहहिं तुम्ह कहँ भय नाहीं।।
तुम्ह आनंद करहु मृग जाए। कंचन मृग खोजन ए आए।।
संग लाइ करिनीं करि लेहीं। मानहुँ मोहि सिखावनु देहीं।।
सास्त्र सुचिंतित पुनि पुनि देखिअ। भूप सुसेवित बस नहिं लेखिअ।।
राखिअ नारि जदपि उर माहीं। जुबती सास्त्र नृपति बस नाहीं।।

1.2.37

चौपाई
राम राम रट बिकल भुआलू। जनु बिनु पंख बिहंग बेहालू।।
हृदयँ मनाव भोरु जनि होई। रामहि जाइ कहै जनि कोई।।
उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर। अवध बिलोकि सूल होइहि उर।।
भूप प्रीति कैकइ कठिनाई। उभय अवधि बिधि रची बनाई।।
बिलपत नृपहि भयउ भिनुसारा। बीना बेनु संख धुनि द्वारा।।
पढ़हिं भाट गुन गावहिं गायक। सुनत नृपहि जनु लागहिं सायक।।
मंगल सकल सोहाहिं न कैसें। सहगामिनिहि बिभूषन जैसें।।
तेहिं निसि नीद परी नहि काहू। राम दरस लालसा उछाहू।।

दोहा/सोरठा

1.1.37

चौपाई
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना।।
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा।।
राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम।।
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई।।
छंद सोरठा सुंदर दोहा। सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा।।
अरथ अनूप सुमाव सुभासा। सोइ पराग मकरंद सुबासा।।
सुकृत पुंज मंजुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला।।
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती।।
अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी।।

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