79

3.2.79

चौपाई
સીય સકુચ બસ ઉતરુ ન દેઈ। સો સુનિ તમકિ ઉઠી કૈકેઈ।।
મુનિ પટ ભૂષન ભાજન આની। આગેં ધરિ બોલી મૃદુ બાની।।
નૃપહિ પ્રાન પ્રિય તુમ્હ રઘુબીરા। સીલ સનેહ ન છાડ઼િહિ ભીરા।।
સુકૃત સુજસુ પરલોકુ નસાઊ। તુમ્હહિ જાન બન કહિહિ ન કાઊ।।
અસ બિચારિ સોઇ કરહુ જો ભાવા। રામ જનનિ સિખ સુનિ સુખુ પાવા।।
ભૂપહિ બચન બાનસમ લાગે। કરહિં ન પ્રાન પયાન અભાગે।।
લોગ બિકલ મુરુછિત નરનાહૂ। કાહ કરિઅ કછુ સૂઝ ન કાહૂ।।
રામુ તુરત મુનિ બેષુ બનાઈ। ચલે જનક જનનિહિ સિરુ નાઈ।।

3.1.79

चौपाई
દચ્છસુતન્હ ઉપદેસેન્હિ જાઈ। તિન્હ ફિરિ ભવનુ ન દેખા આઈ।।
ચિત્રકેતુ કર ઘરુ ઉન ઘાલા। કનકકસિપુ કર પુનિ અસ હાલા।।
નારદ સિખ જે સુનહિં નર નારી। અવસિ હોહિં તજિ ભવનુ ભિખારી।।
મન કપટી તન સજ્જન ચીન્હા। આપુ સરિસ સબહી ચહ કીન્હા।।
તેહિ કેં બચન માનિ બિસ્વાસા। તુમ્હ ચાહહુ પતિ સહજ ઉદાસા।।
નિર્ગુન નિલજ કુબેષ કપાલી। અકુલ અગેહ દિગંબર બ્યાલી।।
કહહુ કવન સુખુ અસ બરુ પાએ ભલ ભૂલિહુ ઠગ કે બૌરાએ।
પંચ કહેં સિવસતી બિબાહી। પુનિ અવડેરિ મરાએન્હિ તાહી।।

2.7.79

चौपाई
ঐসেহিং হরি বিনু ভজন খগেসা৷ মিটই ন জীবন্হ কের কলেসা৷৷
হরি সেবকহি ন ব্যাপ অবিদ্যা৷ প্রভু প্রেরিত ব্যাপই তেহি বিদ্যা৷৷
তাতে নাস ন হোই দাস কর৷ ভেদ ভগতি ভাঢ়ই বিহংগবর৷৷
ভ্রম তে চকিত রাম মোহি দেখা৷ বিহে সো সুনু চরিত বিসেষা৷৷
তেহি কৌতুক কর মরমু ন কাহূ জানা অনুজ ন মাতু পিতাহূ৷
জানু পানি ধাএ মোহি ধরনা৷ স্যামল গাত অরুন কর চরনা৷৷
তব মৈং ভাগি চলেউউরগামী৷ রাম গহন কহভুজা পসারী৷৷
জিমি জিমি দূরি উড়াউঅকাসা৷ তহভুজ হরি দেখউনিজ পাসা৷৷

2.6.79

चौपाई
চলেউ নিসাচর কটকু অপারা৷ চতুরংগিনী অনী বহু ধারা৷৷
বিবিধ ভাি বাহন রথ জানা৷ বিপুল বরন পতাক ধ্বজ নানা৷৷
চলে মত্ত গজ জূথ ঘনেরে৷ প্রাবিট জলদ মরুত জনু প্রেরে৷৷
বরন বরদ বিরদৈত নিকাযা৷ সমর সূর জানহিং বহু মাযা৷৷
অতি বিচিত্র বাহিনী বিরাজী৷ বীর বসংত সেন জনু সাজী৷৷
চলত কটক দিগসিধুংর ডগহীং৷ ছুভিত পযোধি কুধর ডগমগহীং৷৷
উঠী রেনু রবি গযউ ছপাঈ৷ মরুত থকিত বসুধা অকুলাঈ৷৷
পনব নিসান ঘোর রব বাজহিং৷ প্রলয সময কে ঘন জনু গাজহিং৷৷
ভেরি নফীরি বাজ সহনাঈ৷ মারূ রাগ সুভট সুখদাঈ৷৷

2.2.79

चौपाई
সীয সকুচ বস উতরু ন দেঈ৷ সো সুনি তমকি উঠী কৈকেঈ৷৷
মুনি পট ভূষন ভাজন আনী৷ আগেং ধরি বোলী মৃদু বানী৷৷
নৃপহি প্রান প্রিয তুম্হ রঘুবীরা৷ সীল সনেহ ন ছাড়িহি ভীরা৷৷
সুকৃত সুজসু পরলোকু নসাঊ৷ তুম্হহি জান বন কহিহি ন কাঊ৷৷
অস বিচারি সোই করহু জো ভাবা৷ রাম জননি সিখ সুনি সুখু পাবা৷৷
ভূপহি বচন বানসম লাগে৷ করহিং ন প্রান পযান অভাগে৷৷
লোগ বিকল মুরুছিত নরনাহূ৷ কাহ করিঅ কছু সূঝ ন কাহূ৷৷
রামু তুরত মুনি বেষু বনাঈ৷ চলে জনক জননিহি সিরু নাঈ৷৷

2.1.79

चौपाई
দচ্ছসুতন্হ উপদেসেন্হি জাঈ৷ তিন্হ ফিরি ভবনু ন দেখা আঈ৷৷
চিত্রকেতু কর ঘরু উন ঘালা৷ কনককসিপু কর পুনি অস হালা৷৷
নারদ সিখ জে সুনহিং নর নারী৷ অবসি হোহিং তজি ভবনু ভিখারী৷৷
মন কপটী তন সজ্জন চীন্হা৷ আপু সরিস সবহী চহ কীন্হা৷৷
তেহি কেং বচন মানি বিস্বাসা৷ তুম্হ চাহহু পতি সহজ উদাসা৷৷
নির্গুন নিলজ কুবেষ কপালী৷ অকুল অগেহ দিগংবর ব্যালী৷৷
কহহু কবন সুখু অস বরু পাএ ভল ভূলিহু ঠগ কে বৌরাএ৷
পংচ কহেং সিবসতী বিবাহী৷ পুনি অবডেরি মরাএন্হি তাহী৷৷

1.7.79

चौपाई
ऐसेहिं हरि बिनु भजन खगेसा। मिटइ न जीवन्ह केर कलेसा।।
हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या। प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या।।
ताते नास न होइ दास कर। भेद भगति भाढ़इ बिहंगबर।।
भ्रम ते चकित राम मोहि देखा। बिहँसे सो सुनु चरित बिसेषा।।
तेहि कौतुक कर मरमु न काहूँ। जाना अनुज न मातु पिताहूँ।।
जानु पानि धाए मोहि धरना। स्यामल गात अरुन कर चरना।।
तब मैं भागि चलेउँ उरगामी। राम गहन कहँ भुजा पसारी।।
जिमि जिमि दूरि उड़ाउँ अकासा। तहँ भुज हरि देखउँ निज पासा।।

1.6.79

चौपाई
चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा।।
बिबिध भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना।।
चले मत्त गज जूथ घनेरे। प्राबिट जलद मरुत जनु प्रेरे।।
बरन बरद बिरदैत निकाया। समर सूर जानहिं बहु माया।।
अति बिचित्र बाहिनी बिराजी। बीर बसंत सेन जनु साजी।।
चलत कटक दिगसिधुंर डगहीं। छुभित पयोधि कुधर डगमगहीं।।
उठी रेनु रबि गयउ छपाई। मरुत थकित बसुधा अकुलाई।।
पनव निसान घोर रव बाजहिं। प्रलय समय के घन जनु गाजहिं।।
भेरि नफीरि बाज सहनाई। मारू राग सुभट सुखदाई।।

1.2.79

चौपाई
सीय सकुच बस उतरु न देई। सो सुनि तमकि उठी कैकेई।।
मुनि पट भूषन भाजन आनी। आगें धरि बोली मृदु बानी।।
नृपहि प्रान प्रिय तुम्ह रघुबीरा। सील सनेह न छाड़िहि भीरा।।
सुकृत सुजसु परलोकु नसाऊ। तुम्हहि जान बन कहिहि न काऊ।।
अस बिचारि सोइ करहु जो भावा। राम जननि सिख सुनि सुखु पावा।।
भूपहि बचन बानसम लागे। करहिं न प्रान पयान अभागे।।
लोग बिकल मुरुछित नरनाहू। काह करिअ कछु सूझ न काहू।।
रामु तुरत मुनि बेषु बनाई। चले जनक जननिहि सिरु नाई।।

दोहा/सोरठा

1.1.79

चौपाई
दच्छसुतन्ह उपदेसेन्हि जाई। तिन्ह फिरि भवनु न देखा आई।।
चित्रकेतु कर घरु उन घाला। कनककसिपु कर पुनि अस हाला।।
नारद सिख जे सुनहिं नर नारी। अवसि होहिं तजि भवनु भिखारी।।
मन कपटी तन सज्जन चीन्हा। आपु सरिस सबही चह कीन्हा।।
तेहि कें बचन मानि बिस्वासा। तुम्ह चाहहु पति सहज उदासा।।
निर्गुन निलज कुबेष कपाली। अकुल अगेह दिगंबर ब्याली।।
कहहु कवन सुखु अस बरु पाएँ। भल भूलिहु ठग के बौराएँ।।
पंच कहें सिवँ सती बिबाही। पुनि अवडेरि मराएन्हि ताही।।

दोहा/सोरठा

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