चौपाई
पंच कवल करि जेवन लअगे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।।
भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने।।
परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना।।
चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई।।
छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती।।
जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी।।
समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा।।
एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा।।
दोहा/सोरठा