16

2.3.16

चौपाई
ধর্ম তেং বিরতি জোগ তেং গ্যানা৷ গ্যান মোচ্ছপ্রদ বেদ বখানা৷৷
জাতেং বেগি দ্রবউমৈং ভাঈ৷ সো মম ভগতি ভগত সুখদাঈ৷৷
সো সুতংত্র অবলংব ন আনা৷ তেহি আধীন গ্যান বিগ্যানা৷৷
ভগতি তাত অনুপম সুখমূলা৷ মিলই জো সংত হোইঅনুকূলা৷৷
ভগতি কি সাধন কহউবখানী৷ সুগম পংথ মোহি পাবহিং প্রানী৷৷
প্রথমহিং বিপ্র চরন অতি প্রীতী৷ নিজ নিজ কর্ম নিরত শ্রুতি রীতী৷৷
এহি কর ফল পুনি বিষয বিরাগা৷ তব মম ধর্ম উপজ অনুরাগা৷৷
শ্রবনাদিক নব ভক্তি দৃঢ়াহীং৷ মম লীলা রতি অতি মন মাহীং৷৷
সংত চরন পংকজ অতি প্রেমা৷ মন ক্রম বচন ভজন দৃঢ় নেমা৷৷

2.2.16

चौपाई
একহিং বার আস সব পূজী৷ অব কছু কহব জীভ করি দূজী৷৷
ফোরৈ জোগু কপারু অভাগা৷ ভলেউ কহত দুখ রউরেহি লাগা৷৷
কহহিং ঝূঠি ফুরি বাত বনাঈ৷ তে প্রিয তুম্হহি করুই মৈং মাঈ৷৷
হমহুকহবি অব ঠকুরসোহাতী৷ নাহিং ত মৌন রহব দিনু রাতী৷৷
করি কুরূপ বিধি পরবস কীন্হা৷ ববা সো লুনিঅ লহিঅ জো দীন্হা৷৷
কোউ নৃপ হোউ হমহি কা হানী৷ চেরি ছাড়ি অব হোব কি রানী৷৷
জারৈ জোগু সুভাউ হমারা৷ অনভল দেখি ন জাই তুম্হারা৷৷
তাতেং কছুক বাত অনুসারী৷ ছমিঅ দেবি বড়ি চূক হমারী৷৷

2.1.16

चौपाई
বংদউঅবধ পুরী অতি পাবনি৷ সরজূ সরি কলি কলুষ নসাবনি৷৷
প্রনবউপুর নর নারি বহোরী৷ মমতা জিন্হ পর প্রভুহি ন থোরী৷৷
সিয নিংদক অঘ ওঘ নসাএ৷ লোক বিসোক বনাই বসাএ৷৷
বংদউকৌসল্যা দিসি প্রাচী৷ কীরতি জাসু সকল জগ মাচী৷৷
প্রগটেউ জহরঘুপতি সসি চারূ৷ বিস্ব সুখদ খল কমল তুসারূ৷৷
দসরথ রাউ সহিত সব রানী৷ সুকৃত সুমংগল মূরতি মানী৷৷
করউপ্রনাম করম মন বানী৷ করহু কৃপা সুত সেবক জানী৷৷
জিন্হহি বিরচি বড় ভযউ বিধাতা৷ মহিমা অবধি রাম পিতু মাতা৷৷

1.7.16

चौपाई
बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माही।।
तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए।।
परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे।।
तुम्ह अति कीन्ह मोरि सेवकाई। मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई।।
ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे। मम हित लागि भवन सुख त्यागे।।
अनुज राज संपति बैदेही। देह गेह परिवार सनेही।।
सब मम प्रिय नहिं तुम्हहि समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना।।
सब के प्रिय सेवक यह नीती। मोरें अधिक दास पर प्रीती।।

1.6.16

चौपाई
बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना।।
नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।।
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।।
रिपु कर रुप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा।।
सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा प्रसाद अब तोरें।।
जानिउँ प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई।।
तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि।।
मंदोदरि मन महुँ अस ठयऊ। पियहि काल बस मतिभ्रम भयऊ।।

दोहा/सोरठा

1.5.16

चौपाई
जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।।
रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।।
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।।
कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।।
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।।
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।।
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।।
सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।।

1.4.16

चौपाई
बरषा बिगत सरद रितु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई।।
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई।।
उदित अगस्ति पंथ जल सोषा। जिमि लोभहि सोषइ संतोषा।।
सरिता सर निर्मल जल सोहा। संत हृदय जस गत मद मोहा।।
रस रस सूख सरित सर पानी। ममता त्याग करहिं जिमि ग्यानी।।
जानि सरद रितु खंजन आए। पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए।।
पंक न रेनु सोह असि धरनी। नीति निपुन नृप कै जसि करनी।।
जल संकोच बिकल भइँ मीना। अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना।।
बिनु धन निर्मल सोह अकासा। हरिजन इव परिहरि सब आसा।।

1.3.16

चौपाई
धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना। ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना।।
जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई। सो मम भगति भगत सुखदाई।।
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना।।
भगति तात अनुपम सुखमूला। मिलइ जो संत होइँ अनुकूला।।
भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी।।
प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती।।
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा। तब मम धर्म उपज अनुरागा।।
श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं। मम लीला रति अति मन माहीं।।

1.2.16

चौपाई
एकहिं बार आस सब पूजी। अब कछु कहब जीभ करि दूजी।।
फोरै जोगु कपारु अभागा। भलेउ कहत दुख रउरेहि लागा।।
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई।।
हमहुँ कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती।।
करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा। बवा सो लुनिअ लहिअ जो दीन्हा।।
कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।
जारै जोगु सुभाउ हमारा। अनभल देखि न जाइ तुम्हारा।।
तातें कछुक बात अनुसारी। छमिअ देबि बड़ि चूक हमारी।।

दोहा/सोरठा

1.1.16

चौपाई
बंदउँ अवध पुरी अति पावनि। सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।।
प्रनवउँ पुर नर नारि बहोरी। ममता जिन्ह पर प्रभुहि न थोरी।।
सिय निंदक अघ ओघ नसाए। लोक बिसोक बनाइ बसाए।।
बंदउँ कौसल्या दिसि प्राची। कीरति जासु सकल जग माची।।
प्रगटेउ जहँ रघुपति ससि चारू। बिस्व सुखद खल कमल तुसारू।।
दसरथ राउ सहित सब रानी। सुकृत सुमंगल मूरति मानी।।
करउँ प्रनाम करम मन बानी। करहु कृपा सुत सेवक जानी।।
जिन्हहि बिरचि बड़ भयउ बिधाता। महिमा अवधि राम पितु माता।।

दोहा/सोरठा

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